मुक्ति
गुलामी की बेड़ियों पर
क्रान्ति की हवा
और
ज़ुल्म की बरसात ने
ज़ंग लगाया-
और इस ज़ंग लगी बेड़ी पर
सामयिक वैचारिक चोटें लगी
विद्रोह की आग से पिघल कर
ये नाकाम हो गयीं-
और ख़ुद ब ख़ुद
गिरने लगीं
उसी के पैरों में
जिसे आज तक बांधा था।
गुलामी की बेड़ियों पर
क्रान्ति की हवा
और
ज़ुल्म की बरसात ने
ज़ंग लगाया-
और इस ज़ंग लगी बेड़ी पर
सामयिक वैचारिक चोटें लगी
विद्रोह की आग से पिघल कर
ये नाकाम हो गयीं-
और ख़ुद ब ख़ुद
गिरने लगीं
उसी के पैरों में
जिसे आज तक बांधा था।