मुक्तक _ माला _जिद्द_ काम_ मंजिल
जिद्द कच्ची उम्र की अच्छी नहीं होती।
दिखने वाली दुनियां सच्ची नहीं होती।।
ठहरो अनुभव बुजुर्गो से ले लीजिए।
काम नया कीजिए बात सच्ची यही होती।।
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कहते है लोग मिलता है नहीं काम।
पूछो उनसे क्या? छोड़ा है आराम ।।
बिन मेहनत के कमाना चाहते है।
मिलेगा कैसे उन्हें मनमाना दाम।।
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घोंसलों से निकल उड़े पंछी गगन के रास्ते।
जा पंहुचे दूर तलक टहनियों के रास्ते।।
कभी अटके _भटकते भी रहे यहां वहां।
लक्ष्य था मंजिल मेहनत की इसी के वास्ते।।
राजेश व्यास अनुनय