मुक्तक
देखो तो बादल कैसे कजरारे निकले हैं,
छोटी छोटी खिड़की से गलियारे निकले हैं,
चाँद घेरने की ख्वाहिश है तारों की शायद
इसी लिए इस बार इकट्ठे सारे निकले हैं “
देखो तो बादल कैसे कजरारे निकले हैं,
छोटी छोटी खिड़की से गलियारे निकले हैं,
चाँद घेरने की ख्वाहिश है तारों की शायद
इसी लिए इस बार इकट्ठे सारे निकले हैं “