मुक्तक
मै मिट्टी से बर्तन बनाने चला हूँ
मै ग्यान की ज्योति जलाने हूँ
हमे देख कर तुम न यूं दिल दुखाओ
मै बच्चो को अच्छा बनाने हूँ
मै गेरो को अपना बनाने चला हूँ
गुरुकुल की महिमा बढ़ाने चला हूँ
दिल दिल तुम यूं न दिल को जलाओ
मै औरो को दिल से लगाने चला हूँ
कृष्णकांत गुर्जर