मुक्तक
आज फ़िर हाथों में जाम लिए बैठा हूँ।
तेरे दर्द का पैगाम लिए बैठा हूँ।
वस्ल की निगाहों में ठहरी हैं यादें-
आज फ़िर फुरक़त की शाम लिए बैठा हूँ।
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय
आज फ़िर हाथों में जाम लिए बैठा हूँ।
तेरे दर्द का पैगाम लिए बैठा हूँ।
वस्ल की निगाहों में ठहरी हैं यादें-
आज फ़िर फुरक़त की शाम लिए बैठा हूँ।
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय