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11 Aug 2018 · 1 min read

मुक्तक

नफ़रत की बाज़ारों में, मोहब्बत बिकते नहीं देखा,
समन्दर के किनारों को, कभी हँसते नहीं देखा,
रहें खुश और दें खुशियाँ, यही अपना तज़ुर्बा है,
गुज़रते वक़्त को हमने, कभी थमते नहीं देखा।

Language: Hindi
305 Views
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