मुक्तक
मुक्तक
*****
जहाँ इंसान बिकता है वहाँ किसका ठिकाना है।
फ़रेबी बात उल्फ़त में यहाँ करता ज़माना है।
समझ कर कीमती मुझको लगादीं बोलियाँ मेरी-
सिसकती आबरू कहती यही मेरा फ़साना है।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
मुक्तक
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जहाँ इंसान बिकता है वहाँ किसका ठिकाना है।
फ़रेबी बात उल्फ़त में यहाँ करता ज़माना है।
समझ कर कीमती मुझको लगादीं बोलियाँ मेरी-
सिसकती आबरू कहती यही मेरा फ़साना है।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”