मुक्तक
(1)
सुखद परिवर्तन हो जिस रोज
चाँदनी फैलेगी उस रोज
प्रेम ,करुणा , ममता विस्तार
नवल जग रूप सजे उस रोज ||
(2)
ग्यान की लौ का बड़ा महत्व
मुखर हो गहराता देवत्व
ओम का गूंजे अनहद नाद
प्रकट तब हो जाता बुद्धत्व ||
(3)
व्यक्ति में आता एक बदलाव
चरित में होता एक ठहराव
मनुज होता जब प्रबल प्रबुद्ध
प्रकाशित होता हर एक ठाव ||
©®मंजूषा श्रीवास्तव