अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस :इंस्पायर इंक्लूजन
जनता के हिस्से सिर्फ हलाहल
जूनी बातां
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
काँटों ने हौले से चुभती बात कही
23/32.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
आँखों की कुछ तो नमी से डरते हैं
चलो , फिर करते हैं, नामुमकिन को मुमकिन ,
मैं हूँ ना, हताश तू होना नहीं
मजबूरन पैसे के खातिर तन यौवन बिकते देखा।
जहां सत्य है वहां पवित्रता है, प्रेम है, एक आत्मिक शांति और