मुक्तक
आंख ही बेशर्म हो तो व्यर्थ घूँघट क्या करेगा ।।
चमन माली रौंद डाले कोई आखिर क्या करेगा ।
आदमी नंगा खड़ा है सभ्यता के आवरण में ।।
शक्ल ही गंदी हो जिनकी चूक दर्पण क्या करेगा ।।
आंख ही बेशर्म हो तो व्यर्थ घूँघट क्या करेगा ।।
चमन माली रौंद डाले कोई आखिर क्या करेगा ।
आदमी नंगा खड़ा है सभ्यता के आवरण में ।।
शक्ल ही गंदी हो जिनकी चूक दर्पण क्या करेगा ।।