मुक्तक
सीना फ़ौलादी जान-ओ-ज़िगर हाथ रखते हैं
मुहब्बत से रहते हैं मुहब्बत साथ रखते हैं
बात जब वतन की आबरू पे आ जाए
चीरते दुश्मन, माँ के चरणों पे माथ रखते हैं।
वतन की आबरू पे जब आ जाए
बेईमानी की घटा बेसबब छा जाए
भगत,अशफ़ाक, बिस्मिल पैदा होते
मुल्क़ की जड़ें जयचंद जब खा जाए।
अनिल कुमार निश्छल