मुक्तक
मिल के सूखे पत्तों को टहनियों से छाँट दें,
रिश्तों में बढ़ रही इन गहराइयों को पाट दें,
अपनों से दूर होकर हासिल भी क्या करेंगे
ऐसा ना हो कि जीवन तन्हाइयों में काट दें,,
मिल के सूखे पत्तों को टहनियों से छाँट दें,
रिश्तों में बढ़ रही इन गहराइयों को पाट दें,
अपनों से दूर होकर हासिल भी क्या करेंगे
ऐसा ना हो कि जीवन तन्हाइयों में काट दें,,