मुक्तक
मै महल तू झोपड़ी दूरी मिटाकर देख लो |
मै बड़ा तू ठीगना यारी निभाकर देख लो |
ले सकोगे तब अमीरी का मजा
झुग्गियों मे कल बिताकर देख लो|
एक डगर परस्वार्थ की है कौन सा पथ ढूँढते हो|
सत्य पथ को छोड़ झूंठे मार्ग का पथ पूंछते हो|
नेह की गठरी लिए कूछ दूर चलकर देख लो तुम
सत्य पथ को आज भी सब पूजते हो|
रमेश त्रिवेदी
कवि एवं कहानीकार