मुक्तक
28/10/2- #मुक्तक
(१)
विश्व में दो जगह चल रहे युद्ध के परिप्रेक्ष्य में
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छंद आधार -आनंदवर्धक
२१२२ २१२२ २१२
विश्व में संग्राम रुकना चाहिए।
दिल किसी का अब न दुखना चाहिए।।
बिछ चुकीं ल्हाशें वहां अनगिन बहुत,
शांति से अब हल निकलना चाहिए।
(२)
विजात छंद,(१४ मात्रिक) मापनी युक्त
१२२२ १२२२
लिफाफा देखकर पढ़ते।
जमीनी सच नहीं लिखते।।
हमेशा चुट्कुले पढकर,
स्वयं को वो सुकवि कहते।
-*-
आधार छंद – विधाता
समांत -आते, पदान्त-हैं
मापनी-१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
नहीं कोई धरम उनका ,नई गंगा बहाते हैं।
महज इक काम है उनका ,सदा पब्लिक रिझाते हैं।।
नजर उनकी लिफाफे पर, रखे ज्यों मीन पर साधक,
नहीं पढ़ते कभी कविता, चुटकुले वो सुनाते ।
*****—-*****
छठे माह पर ही है आता , माता का ये जगराता।
सबके मन को खूब लुभाता,माता का ये जगराता।।
माता का अब करें जागरण ,और मनाएं मैया को,
कष्ट सभी के ही हर जाता,माता का ये जगराता।
-*-
प्यार से अब बात होनी चाहिए।
प्यार की बरसात होनी चाहिए।
तल्खियां अब बढ चुकी है दरम्यां
प्यार की शुरुआत होनी चाहिए।।
-*-
सपना हसीं /किसी का न/हीं पूरा’ ही/ हुआ✓
टूटी है’ नीं/द जब भी स/दा फर्श को /छुआ✓
गिरते हैं’ उड़/ने वाले म/हज ख्वाब में /उड़ें✓
उनके कदम/ जमीं पे र/हें अब यही /दुआ।✓
२२१२ १२२ १/२२ १२/१ २
प्रदत्त शब्द- कोर कसर
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मुक्तक
(१)
कोर कसर मत छोड़िए,यत्न करें भरपूर।
कर्मवीर व्यक्तित्व से,रहते कष्ट सुदूर।।
अवसर पर जिसने किया, अपना श्रेष्ठ प्रहार,
वही सिकंदर बन गया, कर दे चकनाचूर।
(२)
कोर कसर छोड़ी नहीं, कीचड़ रहे उछाल।
राजनीति के नाम पर,करते आज बवाल।।
भोली जनता पिस रही,दो पाटों के बीच,
अब तक हल पाया नहीं,जिंदा सभी सवाल।
-*-
लिख सकूं दो शब्द मैं भी, शारदे किरपा करो।
मैं निपट मूरख, अनाड़ी,ज्ञान से झोली भरो।।
रच सकूं कुछ छंद अनुपम,ताल-गति कुछ दीजिए,
भावना में हो सहजता,सिंधु से मुझको तरो।
प्रदत्त शब्द- युवती,किशोरी,तरुणी आदि
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तरुणी युवती हैं सभी, बाला के पर्याय।
आज किशोरी जोड़ती,नये- नये अध्याय।।
अबला से सबला बनी, स्वयं उड़ाती यान,
इसीलिए सम्मान भी,खुद ही पाती जाय।।
*******”
तुम्हारे हुश्न का दिलवर हुआ दीदार कुछ ऐसा।
सुनहली धूप है लेकिन लगे बरसात के जैसा।
शशी की चांदनी जैसे घनों से आ रही छनकर,
हुई पूनम अमावस भी बताएं अब लगे कैसा।
नहीं महज वह बेचारी है, नहीं आज किस्मत मारी।
अरमानों के पंख लगे हैं, नहीं सामने लाचारी ।
मत उसको अबला तुम समझो, दुनिया का आधार वही,
अंतरिक्ष में भरे उड़ानें, यान चलाती है नारी।
मिला ना प्यार मनचाहा, मगर फिर भी दिवानी है।
कहां सम्मान है उसका ,लुटी हर दिन जवानी है।
सदा हमने सुना है ये, जगत जननी है नारी ही,
मिला ना मान पर उसको, यही सच्ची कहानी है।।
विश्व गुरु भारत बने,मिलकर करो प्रयास।
मोदी जी ने दे दिया ,है खुलकर आभास।
नहीं किसी से हम कभी, कम थे कम हैं आज,
विश्व गुरू बनकर रहें, है मेरा विश्वास।।
मुक्तक (चतुष्पदी)
विधान मापनी युक्त विधाता छंद आधारित
लगागागा लगागागा लगागागा लगागागा
समान्त आनी पदान्त – है
शब्दांत – कहानी है।
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नहीं है अब जुबां मीठी हुई अब तल्ख बानी है।
यही सच है जमाने का सभी ने बात मानी है।।
भरा है द्वेष का सागर दिलों में आज मानुष के,
नहीं मैं भी अछूता हूं ,यही सबकी कहानी है।।
अटल मुरादाबादी
सुन्दर सौम्य बीबी में खामी नजर आती है।
बेशक्ल पडौसिन भी बस हूर नजर आती है।
खामियों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है जनाब,
चलते हैं आगे बीबी जब बेलन दिखाती है।
बात नाजुक बताना नहीं चाहिए।
अश्क यूं ही बहाना नहीं चाहिए। ।
लोग रखते नमक हाथ में हैं यहां,
जख्म सबको दिखाना नहीं चाहिए ।
212 212 212 2
बात सबको बताया करो ना।
अश्क यूं ही बहाया करो ना।
लोग मुट्ठी में रखते नमक हैं ,
जख्म सबको दिखाया करो ना।।
25/7/22
गीत गजलों की’ महफ़िल सजा दीजिए।
छंद कोई अनोखा सुना दीजिए।।
आज महफ़िल रंगी काव्य के रंग में,
आप भी रंग अपना दिखा दीजिए ।
****************(
मौसम बदल रहा करवट ज्यों, बादल की फटती छाती।
बूंद-बूंद टपकी वर्षा से , निर्मल अब पाती-पाती।
तरुवर, थलचर, नभचर सारे, झूम रहे हैं मस्ती में,
फुदक- फुदक कोयल गाये,अपने में खुद इठलाती।
२५/६/२२ दिनांक
**** मुक्तक ****
(१)
कांचुली में हैं ये’अजगर आज डसने को।
ताक में बैठे हैं’ ठलुवे आज ठगने को।।
तुम सदा रहना सजग ही उन सपेरों से ,
राह में अनगिन मिलेंगे रास रचने को।।
(२)
अंधकार जब हो गहन, नहीं दिखे अंजाम।
सब मसलों का एक हल, झुककर करें प्रणाम।
करें समर्पित कर्म को, ईश्वर को दें अर्ध्य,
काम सभी सबके बनें , सबके दाता -राम।।
🙏💐🙏
शब्दान्त– ‘विषधर’ (चतुष्पदी के अंत में ही आना चाहिए)
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छंद-रोला
उजली है पौशाक, बहुत हैं मन के काले।
मन में भरा विशाक्त, बहुत दूषित मन वाले।।
गली-गली में आज, दिखाई देते रहबर।
मुंह को ढकें दुसाल, घूमते देखो विषधर।।
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बधाई है जनम दिन की, करें स्वीकार दिल से अब।
गुजारिश बस सदा ये ही महरबां नित रहे अब रब।।
निरोगी नित रहे काया,सदा मेहर रखे माया।
अटल की कामना ये ही, हटेंगे खार-कंटक सब।
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(१)स्रिग्वणी छंद
फूल खुशबू के हों वो चमन चाहिए।
देश में शांति का ही चलन चाहिए।
द्वेष- नफरत की’ बातें बहुत हो चुकीं,
प्यार से ही रहें सब वचन चाहिए।
(२)सार छंद
राधा के सॅग खेल रहे हैं, कृष्णा खुलकर होली।।
रंग लगाते बहुत चिढाते, करते हॅसी ठिठोली।।
रंग लगाना एक बहाना, छेड़ रहे हैं कान्हा,
रॅगते रंगों से गालों को, और भिगोते चोली।।
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रजनी छंद,२३ मात्रा मापनी युक्त मात्रिक
२१२२ २१२२ २१२२ २
गालगागा गालगागा ,गालगागा गा
जिंदगी का दर्द हमने, हर भुलाया है।
खाक में मिलकर हमीं ने,गुनगुनाया है।।
वक्त कैसा आ गया अब,भूमि पर देखो
हाल अपना जिंदगी ने, खुद सुनाया है।
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२१२२ २१२२ २१२२ २१२
शक्ति रूपा शारदे मां ज्ञान का वरदान दे।
शब्द शैली सौम्यता अब तू सकल विज्ञान दे।।
काव्य सौरभ से सुसज्जित हो सदा लेखन मेरा,
छंद में रस भाव भरकर इक नयी पहचान दे।।
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बनाकर कुछ बहाना भी मे’रे घर में चली आना।
रंगीला पर्व है होली रंगीला तुम बना जाना।
तुम्हारी हर अदा मुझको बनाती रूप का कायल,
यही मेरी गुजारिश है चली आना चली आना।।
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छंद-विधाता
विषय: होली
नया यह दौर है लेकिन नहीं भूलो धरातल को।
भरो रंगों से जीवन को नहीं रंगो धरातल को।।
सदा पावन रही होली इसे पावन ही’ रहने दो,
न बांटो रंग भेदों में सुखद रक्खो धरातल को।।
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२११×७+२(२२वर्ण)
गाॅवन में वह बात नहीं सबु गाॅवन से अब धाय रहे।
भूख मिटे तन तृप्ति बसे मन लोग यहां अब पाय रहे।
भोग विलास बढ़े मनवा नित औरन को समुझाय रहे।
छोड़ दियो सत काम सभी खुद में खुद आज समाय रहे।
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आजादी के महाजनक तुम, देश तुम्हें वंदन करता है।
अमर तुम्हारा नाम जगत में, जन- जन अभिनंदन करता है।
कब आओगे पुनः धरा पर ,हे गांधी जी बतलाओ अब,
बिलख रहा है जग यह सारा, पूर्ण विश्व क्रंदन करता है।।
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नकली बाबा हैं बहुत असली केवल एक।
दाढ़ी से पहिचान पर गुण हैं बहुत अनेक।
चेहरा जिनका खुश्क है हैं मृदुल भंडार।
हॅस जाते हैं लोग नित सुनकर उनकी टेक।।
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मजा उनको बहुत आता सलीका ही सिखाने में।
नहीं लगता उन्हें पल भर जमाने को हंसाने में।।
भला सा नाम है उनका जिन्हें कहते सभी बाबा,
हमारे पास ही निकले जिन्हें ढूंढा जमाने में।
शनिवार ,29-01-2022
मुक्तक द्वय
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(१)
छंद-हरिगीतिका
मौसम चुनावी दीखता,रण इस तरह कुछ अब सजा।
अब वो लुभाते वोट को, पायें युॅ सत्ता का मजा।।
है जीतने की चाह ही अब, जीत ही उनको मिले।
बस दीखता है वोट केवल चाहते उसकी रजा।
(२)
छंद-लावणी
कुहरे का धुॅधलका छॅटेगा,होगा फिर धवल सवेरा।
पेड़ों पर पक्षी चहकेंगे, खग वृंद करेंगे डेरा।।
रश्मी-रथ आरूढ सूर्य भी,अब भव्य दिव्य चटकेंगे,
रवि की गर्मी पाकर के, नाचेगा चित्त चितेरा।।
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(१)
बैमौसम बरसात ने , किया हाल बेहाल।
सर्दी की बढती तपिश, बेढंगी है चाल।।
हाथ-पांव कंपित हुए,मुंह से निकली भाप।
कैसे अब जीवन जिएं,जीना हुआ मुहाल।।
(२)
कोरोना औ ठंड की,सब पर दोहरी मार।
बबा-शीत से कीजिए,सबका बेड़ा पार।।
दुनिया में इनसे बढ़ें, दुख दरिद्र संताप,
हे जग की करतार अब,कीजै जग उद्धार।।
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(१) हरिगीतिका छंद
२२१२ २२१२ २२१२ २२१२ (=२८)
ये जिंदगी दो चार दिन, हर पल इसे हॅसकर जिओ।
हर हाल में खुद को रखो खुश, बस सदा खुलकर जिओ।
किसको पता कब जिंदगी की, शाम हो जाये कहीं,
यह अर्ज करता अब अटल भी, यार मिल जुल कर जिओ।।
(२)
गीतिका छंद
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
अब सियासत छोड़ दो नफरत घृणा ओ द्वेष की।
बस हिफाजत अब करो अपने वतन ओ देश की।।
ये सियासत नित हमें पीछे धकेलेगी सदा-
अब करो हित की सियासत मत करो आवेश की।।
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छंद-आल्हा/वीर
रस-व्यंग/हास्य
(१)
गुरुवर कहकर टांग खींचते , हमने देखें हैं इंसान।
नेकी कर कुएं में डाल अब,मत नहिं उसको अपना मान।
आगे पीछे करें बुराई,सम्मुख करते शिष्टाचार।
पीछे भोंक रहे हैं भाला,करते आगे हैं आभार।।
(२)
दुनिया में बह रही हवा अब,उल्टी गिनती की है चाल।
दुनिया दारी जाय भाड़ में,केवल मिल जाये अब माल।
प्यार मुहब्बत झूठे हैं सब, सबमें दिखता है व्यापार।
भाव दिखावट वाले हैं अब,दूषित दिखते हैं आचार।।
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मीठी वाणी सबको भाती, सबके मन को दे भरमाय।
मक्खन का रगड़ा देते जो,वाणी में नित झूठ समाय।
उस जन को सच्चा मत मानो,जो झूठीं कसमें खा जाय।
मानो या नहिं मानो अब तुम,कहते सत्य अटल कविराय।।
२१२२ २१२२ २१२२ २
रौशनी की रौशनी में जब नहाये हम।
नेह की धारा बही जब पास आये हम।।
शब्द बनकर खिल रहे थे पुष्प जीवन में,
और उनकी खुशबुओं से खिलखिलाए हम।
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२२१२ २२१२
२२१२ २२१२
मधुमालती छंद
गढता बहुत इतिहास है।
यह हास है परिहास है।।
बस झूठ पर कालिख पुती,
है द्वार पर इज्जत लुटी।।
“यह जीवन है”
देखें एक मुक्तक
????
छंद-मनमोहन
मात्रा भार-१४
८,६ पर यति।
जीवन का पथ, सुगम सरल।
मत होना तुम,महज विकल।
यह जीवन तो, सोम-सरस,
मत समझो तुम,महज सुजल ।
?अटल मुरादाबादी ?
आशिकी का रंग कुछ ऐसा चढा।
प्यार का हर कायदा हमने पढा।
बदनसीबी इस तरह हाबी हुई
लौटा उल्टे पांव जब आगे बढ़ा।।
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नहीं आतीं कभी मुझको मुहब्बत प्यार की बातें।
नहीं काटीं कभी मैंने मुहब्बत इश्क में रातें।
हुई मुझको मुहब्बत है वतन की शान से यारो,
लिखा मैंने वतन खातिर यही मेरी हैं सौगातें।
? विनम्र श्रद्धांजलि ?
कर रहा है देश अर्पित अब तुम्हें श्रृद्धा सुमन।
खोजती हर आंख तुमको कर रही शत् शत् नमन।।
आंख आंसू से भरी है आज हिंदुस्तान की,
बिन तुम्हारे हो गया है आज ये उजड़ा चमन।।
?????????????
नमन सभी उन जांबाज़ों को, जो बिन वक्त शहीद हुए।
काल गाल में समा गये पर मरकर आज फरीद हुए।
आज गगन में स्थापित हैं वो बनकर अमिट सितारा से,
दिव्य सुशोभित चमक रहे हैं जग में आज वहीद हुए।
चुनावी माहौल में देखें
व्यंग एक मुक्तक के माध्यम से ?
बन रहीं हैं टोलियां अब देश के मैदान में।
लोग रोड़ा बन रहे हैं राष्ट्र के निर्माण में।
दल बदल दिखता यहां पर है चुनावी अब समां,
सिर्फ वोटर दीखता है अब यहां इंसान में।।
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सुप्रभात संग संप्रेषित है एक मुक्तक ?
जीवन तो बहती धारा है, बहते जाना है।
पत्थर भी रज कण बन जाते, क्यों घबराना है।
मुश्किल तो आयेगी हर पल,मनवा इन राहों में,
कर्मवीर पथ पर बढते हैं, बढते जाना है।
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पीत चुनरिया पहन धरा ने दुल्हन सा श्रृंगार किया।
वन उपवन में सुमन खिले हैं भॅवरों ने मकरंद पिया।
पेड़ों पर अब बोल रही है कोयल मीठी वाणी में,
छिटक रही है धूप चमन में मनमोहक मधुमास दिया।।
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बसे हैं राम घट -घट में,बसे हैं श्याम घट- घट में।
लिया है नाम जिसने भी,मिले हैं राम झट-पट में।।
कहे कोई उन्हें कृष्णा,कभी श्री राम कहता है,
सहारा है दिया उसको,दिखा जब मीत झंझट में।
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सबके घर की दुलारी हैं ये बेटियां।
मां-बाबा को प्यारी हैं ये बेटियां।।
बेटियों से ही रौशन ये घर ओ चमन,
रब की नायाब रचना हैं ये बेटियां।।
उजाला हैं’ हर आशियाने का ये ।
करें नाम रौशन घराने का ये।
बिना बेटियां हर कहानी अधूरी,
चरागा खाक हैं जमाने का ये।
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चंद अश-आर
सुर्ख ओंठों पर स्वत: ही अब हंसी आने लगी।
बंद पलकों में मिलन की हर खुशी छाने लगी।
कसमसाने अब लगी है शाम भी आवेग में,
वस्ल की उम्मीद में अब रात भी गाने लगी।।
वक्त भी अब पंख पहने उड़ रहा आकाश में,
दो घडी लेकिन मिलन की आज कुछ माने लगी।।
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१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
तुम्हारे हुश्न का दिलवर हुआ दीदार कुछ ऐसा।
फकत हमको मिला है प्यार का अहसास कुछ ऐसा।।
नहीं कटतीं हैं रातें बिन तुम्हारे अब सुकूं से ये,
हुआ है रात में दिन का इलम बरसात के जैसा।
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आओ बच्चों तुम्हें सुनाएं कथा एक इंसान की।
जिसने लिख दी कथा स्वयं ही पावन हिंदुस्तान की।
लौह पुरुष था भारत मां का बल्लभ भाई नाम था,
एकीकृत कर नींव रखी थी भारत राष्ट्र महान की।
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१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
दिलों की हर इबारत पर मैं हिंदुस्तान लिखता हूं।
वतन की हर इमारत पर मैं हिंदुस्तान लिखता हूं।
लिखी मैंने नहीं बक-बक कलम से आज तक यारों,
कभी जब भी लिखा मैंने मैं हिंदुस्तान लिखता हूं।।
*****”******”**”*””*”
[१२२ १२२ १२२ १२२
अभी बात दिल की कही ही कहां है।
बिना अब तुम्हारे अधूरा जहां है।
नहीं वक्त कटता बिना ये तुम्हारे,
जहां तुम टिके हो ठिकाना वहां है।
मुक्तक लोक, शनिवार;१३/११/२१
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मुक्तक- १
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विधाता छंद-२८ मात्रा
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बिना श्रीराम के मुझको,कहीं भी कुछ नहीं भाता।
बिना उसकी शरण मुझको,तनिक भी चैन अब आता।।
समर्पित है सकल जीवन, चरण में राम ये तेरी
बिना तेरे प्रभू मेरे, कभी कोई न पल जाता।।
~~~~~~~~~~~~~~
मुक्तक- २
~~ ~~
विजात छंद-१४ मात्रा
१२२२ १२२२
सहारा राम का मेरे।
मुझे हर ओर से घेरे।।
कभी जब मैं हुआ विचलित
तभी दिन राम ने फेरे।।
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मुक्तकलोक मुक्तक मेला समारोह 386
दिनांक-6/11 /2021
भैया दूज पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
???????????????
(१)
पावन भैया दूज है,अति विशेष यह पर्व।
मंगल तिलक लगायकर,बहना करती गर्व।।
प्रीति भोज सम्मान दे, अनुपम अतुलित प्यार,
भैया-भावज के लिए,नेह लुटाती सर्व।।
(२)
अनुजों पर करती सदा,प्रेम पुष्प बौछार।
अग्रज से पाती सहज, उत्तम सा उपहार।।
पावन भैया दूज का, ये ही है बस भाव,
भाई का हो नित भला,करती सदा विचार।।
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जीवन तो बहती दरिया है बहते जाना है।
सुख दुख तो आते जाते हैं क्यों घबराना है।
दुनिया इक मेला है दो पल का ठहराव महज,
सैर सपाटा करके ही बस बढते जाना है।।
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नहीं बेचैन रहता मैं,मैं अपनी बात कहने को।
चुना मैंने मरम दिल का सभी की बात कहने को।
सदा करता हूं बातें मैं जमाने की हिमायत की,
दिखाता आइना उनको उन्हीं की बात कहने को।
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नमन वंदन करूं मन से जो बैठे मंच पर नायक।
सुशोभित है यहां अंबे जो वाणी की है अधिनायक।
सभी का मैं करूं स्वागत सभी का ही है अभिनंदन।
विराजे हैं यहां बाबा जो छंदों के हैं परिचायक।
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विराजे हैं जो डायस पर उन्हें मेरा नमन शत् शत्।
विराजे हैं जो कुर्सी पर उन्हें मेरा नमन शत् शत्।।
महज़ इक मातु अंबे है जो देती दास को सब कुछ,
विराजी है जो अक्षर में उन्हें मेरा नमन शत् शत्।।
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विषय-शब्द
शब्द-शब्द से मिलकर बनते गीत, गजल- संगीत।
शब्दों के भावों में बसती दुनिया की सद्प्रीत।।
शब्द कुटिल-मीठे होते मन के भावों को ढोते,
शब्दों के संयोजन से ही ढलती है नवरीत।
??
अटल मुरादाबादी
१५/९/२१
हिंदी दिवस की सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई व
अनंत शुभकामनाएं ?
हिंदी मेरी हिंदी तेरी, हिंदी है जन-जन की भाषा।
मन के सब उद्गार उड़ेले,मुखरित करती मन की भाषा।
सरल सौम्य लिखने में इतनी, जैसी बोलें वैसी लिखते,
तकनीकि आधार सबल है,सकल विश्व में उत्तम भाषा।।
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दिनांक ३१/०८/२०२१
विषय:माखन
विधा-मुक्तक
छंद:विधाता
कभी माखन चुराते हैं कभी कपड़े छिपाते हैं।
कभी अठखेलियां खेलें सभी का मन लुभाते हैं।
बसे सबकी दिलों में हैं सभी का मान हैं रखते,
बजाकर बांसुरी की धुन कभी सबको रिझाते हैं।।
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विषय :सागर
छंद:लावणी
चंदा जैसी शीतलता हो, सागर सम गहराई हो।
तन में तुरंग सा जोश रहे,सदा अमिट तरुणाई हो।
मन में मन जैसा वेग रहे,न कभी वह अब शिथिल रहे,
मैं करुं सदा पर हित नित ही,हिय में नित सच्चाई हो।
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दिनांक 11/08/2021
दोहा -मुक्तक
रस-व्यंग
घड़ियाली आंसू बहा,करते हैं प्रतिरोध।
नित विकास के कार्य में ,करते हैं अवरोध।
कृत्य नीच के कर रहे, दें किस्मत को दोष,
ऐसे जन को दीजिए,हे मां अब सद्बोध।
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रस: विप्रलंभ श्रंगार
सावन सूख रहा सूखे से,बूंदों की सूरत नहिं दिखती।
पिया मिलन को हुई वावरी,गौरी विरह आग में जलती।
पल पल हुआ बरस बीते ज्यों,अंगना-मनवा खाली-खाली,
कब आयेगी बदरी कोई,हिय में शीतलता को भरती।।
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नहीं करता बड़ाई मैं कभी नजदीक यारों की।
नहीं करता कभी सिरजन बड़ाई में मैं द्वारों की।
दिखाता आइना उनको जो चमचों से घिरे रहते,
सदा करता खिलाफत मैं अजीजी चाटुकारों की।
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जीवन तो बहती दरिया है बहते जाना है।
सुख दुख तो आते जाते हैं क्यों घबराना है।
दुनिया इक मेला है दो पल का ठहराव महज,
सैर सपाटा करके ही बस बढते जाना है।।
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२२ २१२ २२२ २१२ २२२
सुन्दर सौम्य बीबी में खामी नजर आती है।
बेशक्ल पडौसिन भी बस हूर नजर आती है।
खामियों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है जनाब,
चलते हैं आगे बीबी जब बेलन दिखाती है।
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बुरा वक्त भी ढल जाता है, सोच अगर अच्छी होती।
फसल वही होती खेतों में,जो दुनिया उसमें बोती।।
धैर्य अगर खोया इस पल तो, बहुत पड़ेगा पछताना।
संयम जिसने तजा समय पर,वह दुनिया पल पल रोती।।
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हो कितना भी गहन अंधेरा,भोर सुबह का होता है।
सूरज के सम्मुख आने पर,तमस स्वयं ही खोता है।
शीघ्र मरेगा काला विषधर,कोरोना भी संबल से,
जिसने पालन किया न संयम,वही समय पर रोता है।
(१)
उलझी उलझी बंधी जिंदगी।
चक्रवात में फॅसी जिंदगी।।
चाहें जितने कंटक हों पर,
अपने पथ पर चली जिंदगी।।
(२)
पतझर सावन सभी जिंदगी।
धूप-छांव में पली जिंदगी।
ऊबड़-खाबड़ जीवन का पथ,
पथ के फन में ढली जिंदगी।।
(१)
तमस को तोड़कर देखो,सुनहला भोर आया है।
उड़े हैं भोर में पंछी ,गगन में शोर छाया है।
तजी मन की कलुषता अब,मनुज भी श्वेत सा दिखता,
धरा औ नील अंबर ने,नया नवगीत गाया है।
(२)
अच्छा अच्छा अब बोल सखे।
यह जीवन है अनमोल सखे।
सुख- दुख तो जीवन की चर्या,
केवल दुख से मत तोल सखे।।
*************”********
शब्दांत – ‘ हाथ मिलाते ‘
प्रदत्त शब्दांत पर आधारित चतुष्पदी :-
————————————————
तज मर्यादा करते वादा इक ही सुर में गाते हैं।
आते जबहि चुनाव देश में नेता बहुत लुभाते हैं।
बदल रहे हैं नेता जी नित गिरगिट जैसे रंगों को,
जो थे दुश्मन इक दूजे के आकर हाथ मिलाते हैं।
शब्दान्त:- ‘कुर्सियाँ’
सबको ही हैं बहुत लुभाती जीवन भर ये कुर्सियाँ ,
कभी हँसातीं कभी रुलातीं पलभर में ये कुर्सियाँ ।
कभी भाल पर चढ़कर बोलें,कभी चटायें धूल ये,
महिमा इनकी बहुत अनूठी,अलबेली ये कुर्सियाँ ।।
✍️ अटल मुरादाबादी ?
न मंदिर है न मस्जिद है ,न गिरजाघर न गुरुद्वारा।
हमें तो है वतन केवल हमारी जान से प्यारा।
समर्पित है सकल जीवन वतन की आन की खातिर,
रहे झंडा सदा ऊंचा जगत में जो अलग न्यारा।।
************************************
कीजिये चिंतन -मनन ,मन नीर सा निर्मल बने।
प्रश्न हों मन में जटिल यदि भाव हों कुछ अनमने।
आस की धारा बहेगी, काम बनते हैं सभी –
मार्ग खुल जाते पथिक के, दूर होती अड़चनें।।
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बहुत खूबसूरत ज़माना है यारो ,आँखों का परदा हटाकर तो देखो !
हर जगह पर मिलेगा ख़ुशी का ही आलम ,नज़रों का नजरिया बदलकर तो देखो !
हर स्वांस में ख़ुशी की अनुभूति मिलेगी ,जीवन का होगा सफर ये सुनहरा –
जो मिला है, बहुत है, प्रभु की है कृपा ,सोच को थोड़ा बदलकर तो देखो!
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आधार छंद : चौपाई (मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान-16 मात्रा, अंत में वाचिक गाल वर्जित,
आदि में द्विकल-त्रिकल-त्रिकल वर्जित।
ध्रुव शब्द- जन्म
अनुपम है उपहार जिंदगी।
ईश्वर का उपकार जिंदगी।
जन्म मिला, जी भरके जी लो;
क्यों करते बेकार जिंदगी।।
शाश्वत तो बस जन्म मरण है।
जीवन का नित होय क्षरण है।
मय को तज दे मूर्ख मनुज ऐ!
संकट मोचक प्रभू शरण है।
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कीजिये न कुछ गलत नफे-नुकसान के लिऐ।
कीजिये अब कुछ नया वतन महान के लिए।
स्वार्थ की हमने है खाई खीर हर दम ही ,
कीजिये कुछ तो समर्पित बलिदान के लिए।
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कोर कसर मत छोड़िये, कीजिए हर प्रयास ।
मिले सफलता सहज ही,होवे सार्थक आस ।।
कोर कसर जब भी रहे ,बिगड़ें बनते काम,
व्यर्थ जतन होते सभी ,होय पूर्व आभास।।
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ऊबड़ खाबड़ धरती पर जो ,फूलों की खेती करते हैं।
जेठ दुपहरी माघ शीत में, खेतों में पानी भरते हैं।
फसल उगाते,राष्ट्र बनाते, लोग अन्नदाता कहते हैं।
कैसा है दुर्भाग्य मगर यह, कर्ज़ों से निशदिन मरते हैं।
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पीत चुनरिया पहन धरा ने,दुल्हन का श्रृंगार किया।
वन-उपवन में सुमन खिले हैं,भौरों ने मकरंद पिया।।
पेड़ों पर अब कूक रही है ,कोयल मीठी वाणी में ,
छिटक रही है धूप चमन में,नव नूतन मधुमास दिया।।
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जिंदगी की ढलती शाम को इक नया आयाम दें।
सूर्य की पहली किरण सा इक नया पैगाम दें।।
शाम ढलती रात बढ़ती सूर्य का होता उदय ,
जिंदगी के इस चलन को इक नया सा नाम दें।।
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खिले जीवन तुम्हारा ये गुलों की पॅखुरी जैसा।
रॅगीला हो वह रॅगों से सुमन के रॅग का जैसा।
सदा बहती रहे खुशबू मृदुल जीवन में तेरे,
सुहाना हो सफर तेरा गगन में विधु के जैसा।।(१)
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नहीं लिखनी मुझे आती कभी श्रृंगार की भाषा।
कभी लिखता नहीं यारों महज मैं प्यार की भाषा।
वतन की बात लिखता हूं कठिन चाहे सफर कितना,
दिखाना आइना उनको भले अंगार की भाषा।(२)
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१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
नहीं चिंता उन्हें इनकी जो’ दिन भर काम करते हैं।
रखें गन को वो कांधे पर मगर खुद वार करते हैं।
मरें चाहे जिये कोई नहीं मतलब उन्हें कोई,
सधे उल्लू महज उनका सदा वह बात करते हैं।(३)
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वतन पर मिट गये जो खुद, उन्हीं की बात करता हूं।
खड़े जो सरहदों पर हैं, उन्हीं की बात करता हूं।।
नहीं करता कभी बातें,मुनव्वर और राहत की,
बसा जिनके दिलों भारत, उन्हीं की बात करता हूं।।(४)
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वतन पर मर मिटे जो हैं मैं उनकी बात करता हूं।
सुखन की बात जो करते मैं उनकी बात करता हूं।
नहीं लिखता कभी ग़म को हंसी की बात करता हूं।
जफा से दूर रहता हूं वफ़ा की बात करता हूं।(५)
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नहीं कोई कवि मैं हूं नहीं कोई भी वाचक हूं।
नहीं कोई मैं रहबर हूं फकत अदना सा साधक हूं।
समर्पित है ये जीवन भी सुमन शब्दों के मां तुझको,
भरो झोली हे मां मेरी महज तेरा ही याचक हूं।।(६)
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नहीं मुझपर करो किरपा नहीं मांगूं नफासत मैं।
नहीं मांगू लिफाफा मैं नहीं मांगूं अमानत मैं।
मुझे बस तालियां दे दो दुआओं में अभी भरकर,
यही मांगू लिफाफे में करूं तुमसे इबादत मैं।
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१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
विधाता छंद
चलो जब साथ तुम मेरे,नये सपने सजाऊंगा।
लिखोगी गीत अधरों पर मगर मैं गुनगुनाऊंगा।
रखोगी उंगलियां लेकिन धुनें मैं ही बजाऊंगा।
गजल बेशक पढ़ोगी तुम बहर मैं ही बनाऊंगा।
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तुम्हारे चांद से मुखड़े को छूना चाहता हूं।
तुम्हारी आंख के सागर में खोना चाहता हूं।
महज तेरा मिले बस संग है मंजूर मुझको,
तुम्हारी जुल्फ के साये में सोना चाहता हूं।
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[१]
मीठा मीठा तू बोल सखे,अमृत सा कुछ घोल सखे ।
ऐसा कुछ कर जीवन में, दुनिया तुझको रोज लखे।।
जीवन में संताप बहुत हैं, सहने को घाव बहुत हैं।
जीवन तब सार्थक होता है,जब मानव हर स्वाद चखे।।
(२)
एक हाथरस की बेटी ने, फिर से जान गॅवाई है।
और पडौसी का बेटा भी,निर्मम हुआ कसाई है।
शासन हिस्सेदार बना है,दृश्य देखकर विहॅस रहा,
भरी रात में चोरी -चुपके, मुखाग्नि चिता लगाई है।।
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राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि तिथि पर सादर समर्पित मुक्तक
सत्य अहिंसा के तुम नायक जनता के जननायक थे।
बिगुल बजाया आजादी का तुम उस के अधिनायक थे।।
जाति धर्म का भेद किया नहिं तुमने मानव मानव में,
प्यार मुहब्बत भरी रगों में तुम उसके परिचायक थे।
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सादगी के प्रतीक लाल बहादुर शास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री
बौने कद के थे मगर,मन के बहुत विशाल।
अन्तः से निर्मल, सहज,काशी के वह लाल।
काशी के वह लाल,देश को पल- पल भाये।
बनकर एक मिसाल,जगत में थे वह छाये।।
कहै अटल कविराय,टिके नहिं अनगढ टोने।
बने देश प्रधान, हुए सब नेता बौने।।
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छंद:विधाता
मुक्तक द्वैय
(१)
अंगूठा तुम दिखाओ मत, बनी बातें बिगड़ जातीं।
जुबां से तल्खियों की ही, बनी बातें बिगड़ जातीं।।
करो संवाद आपस में , सलीका है यही बेहतर ,
समय की मांग है ये ही, नहीं बातें बिगड़ जातीं।।
(२)
नहीं उंगली उठाओ तुम, किसी पर बेवजह यारो।
सभी घर कांच के होते, नहीं पत्थर कभी मारो।।
अगर पत्थर उछाला तो, ये’ दिल भी टूट जायेगा,
लिखें सबकी कुशलता को, सभी पर प्यार को वारो।।
? अटल मुरादाबादी ?
ओज व व्यंग कवि
नोएडा उत्तर प्रदेश
9650291108 &8368370723
atalmoradabadi@gmail.com