मुक्तक
मुक्तक
212 212 212 212
रात ख्वाबों में वो मुस्कराते रहे ।
मीठे सपने मुझे रात आते रहे।
सुबह पूछे सबब देर में क्यों उठा,
बोला सपने मुझ यूँ लुभाते रहे।
वो मुझे देखकर मुस्कराती रही।
मैं न समझा मुझे वो बुलाती रही।
एक दिन मैंने कहा आपसे प्यार है,
फिर तो नज़रे वो मुझ से चुराती रही।
-अभिनव मिश्र✍️