मुक्तक
तेरी सांसों में घुल जाने की फ़क़त आरजू हैं दिल की
क्या करूं जो लोग कहते हैं तेरी सांसों से ही खतरा है
~ सिद्धार्थ
2.
छलके हुए मोती गालों पे ही ढलक कर सूख जाते हैं
दिल कि दिवालों पे अल्साई हुई नमी छोड़ जातें हैं
यार की याद भी महकते गुल से कम नहीं
तनहाई के आलम में भी लबों पे मुस्कुराहट छोड़ जाती है
~ सिद्धार्थ