मुक्तक
अपने हाथों को धोउं या रहने दूं
रात ख्वाब में उस ने इसे छुआ था
पलट कर देखती मैं जब तक यार को
बुलाहट उसको दूसरी तरफ़ से हुआ था…?
/
जो छूटा है उसे दिलों जां से जी
यार की दी हुई चीज है
अरे नांदा जरा मुस्कुरा के जी…
~ सिद्धार्थ
अपने हाथों को धोउं या रहने दूं
रात ख्वाब में उस ने इसे छुआ था
पलट कर देखती मैं जब तक यार को
बुलाहट उसको दूसरी तरफ़ से हुआ था…?
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जो छूटा है उसे दिलों जां से जी
यार की दी हुई चीज है
अरे नांदा जरा मुस्कुरा के जी…
~ सिद्धार्थ