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17 Mar 2020 · 1 min read

मुक्तक

बड़े नाज़ुक दौर के रहगुज़र से गुजर रहे है हम
लिबास बदन पे है और बदन उतार रहे हैं यहां लोग

ये जो घूमते हैं संसद के बाजार में फूले हुए से लोग
रखते हैं आवाम को ठोकरों में आवाम से चूने हुए लोग

~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
3 Likes · 143 Views
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