मुक्तक
मैंने हर्फ़ हर्फ़ में लिखा तुझे,
जो कभी दिखा नहीं तुझे
मैंने लब्ज़ लब्ज़ में सवारा तुझे,
ये भी नहीं क्यूं है गवारा तुझे
खुदा के अक्स को मिटाया मैंने
पहलू में तुझको लिटाया मैंने
ऐ शख्स तू भी कमाल का निकला
गए मौसम के जैसे न देखा दुबारा तुझे
~ सिद्धार्थ