मुक्तक
बुलन्दी की शिखा तक मैं, शिखा बन आस की चलती,
नयन में या किसी के मैं, शिखा बन ख्वाब की पलती।
शिखा हूँ मैं जले जाना , यही फितरत सदा से है,
मिटाकर तम दिलों का मैं, शिखा बन प्यार की जलती।
दीपशिखा सागर-
बुलन्दी की शिखा तक मैं, शिखा बन आस की चलती,
नयन में या किसी के मैं, शिखा बन ख्वाब की पलती।
शिखा हूँ मैं जले जाना , यही फितरत सदा से है,
मिटाकर तम दिलों का मैं, शिखा बन प्यार की जलती।
दीपशिखा सागर-