मुक्तक
1.
तेरे पलकों से जो अब तक ढलके नहीं
उन्हीं गर्म आशुओं का आगाज हुं मैं…
दिल से एक आवाज लगा कर देख
तेरे ही बेताब दिल की आवाज हूं मैं
हो अंधेरा घना या तनहाई का आलम
तेरी टूटती उम्मीदों की पुर्दिल परवाज़ हूं मैं
~ सिद्धार्थ
1.
तेरे पलकों से जो अब तक ढलके नहीं
उन्हीं गर्म आशुओं का आगाज हुं मैं…
दिल से एक आवाज लगा कर देख
तेरे ही बेताब दिल की आवाज हूं मैं
हो अंधेरा घना या तनहाई का आलम
तेरी टूटती उम्मीदों की पुर्दिल परवाज़ हूं मैं
~ सिद्धार्थ