मुक्तक
1.
दिल को ये आरजू है कि आप दिल से दिल को समझाइए
हमारी दिल की उलझनों को जरा दूर तलक तो भगाइए
हमारे सब्र को जाना अजी आप और न आजमाइए
जाइए पहले तसल्ली के फूल को तो दिल में उगाईए
2.
चलेंगे कभी हम बाहें थामे देवदार के पेड़ों को गिनने
मैं उन्हें गीनुंगी तुम मेरे सीने की उखड़ी सांसे गिनना
3.
पलकें मुंदो अपनी सीने पे रखो लो हाथ
दिल में मगर सखे तुम रखना न कोई बात
स्वप्न लोक में परिया रसता तकती होंगी
सीने से लगा कर उनको करना तुम ढेरो बात
~ सिद्धार्थ