मुक्तक
१.
कहां- कहां खोजूं मैं खुद को
मुझ में तो तुम अंदर तक बैठे हो
~ सिद्धार्थ
२.
हमने हिसाब रखा ही नहीं
तुम कितनी बार आकर जाते हो
ये तो दिल की बात है न जाना
तुम दिमाग में थोड़े न आते हो
~ सिद्धार्थ
३.
तुमने कुछ पूछा ही नही
सो हमने भी बताया नहीं
.
बाकी सब, ठीक है
~ सिद्धार्थ
४.
मेरे अंदर जो घूप अंधेरा
हांथ बांधे चौकड़ी मारे
डिठियाये हुए बैठा है
क्या मांगता है… ?
कहीं वो…
गांव वाले घर के घुप्प अंधेरे कोने
में बैठी बिल्ली तो नहीं
~ सिद्धार्थ
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