मुक्तक
मुझे होशियार लोगों को कभी ढ़ोना नहीं आया,
उस ज़ालिम की तरह बेशर्म भी होना नहीं आया
यूँ ही घूमती थी नाज़ से, उसकी मोहब्बत पर,
मेरे हिस्से उसके दिल का इक कोना नहीं आया
मुझे होशियार लोगों को कभी ढ़ोना नहीं आया,
उस ज़ालिम की तरह बेशर्म भी होना नहीं आया
यूँ ही घूमती थी नाज़ से, उसकी मोहब्बत पर,
मेरे हिस्से उसके दिल का इक कोना नहीं आया