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19 Nov 2019 · 1 min read

मुक्तक

विधा – #मुक्तक

जिये जा रहा हूँ, अकेले अकेले।
सिये जा रहा हूँ, अकेले अकेले।
जहर जिन्दगी बन गई आज मेरी-
पिये जा रहा हूँ, अकेले अकेले।।

न आँसू बचे हैं, जिन्हें मैं दिखाऊँ।
बता क्या कहानी, सभी को सुनाऊँ।
लिखा भाग्य में है,बता क्या विधाता-
रहा हाथ खाली,भला क्या दिखाऊँ।।

अकेला चला था, अभी भी चलूंगा।
अकेले अकेले , सभी से लड़ूंगा।
नहीं आज बाधा हमें रोक पाये-
लिए हाथ में भाग्य कुंजी बढूंगा।।

✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

Language: Hindi
3 Likes · 293 Views
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