मुक्तक
विधा – #मुक्तक
जिये जा रहा हूँ, अकेले अकेले।
सिये जा रहा हूँ, अकेले अकेले।
जहर जिन्दगी बन गई आज मेरी-
पिये जा रहा हूँ, अकेले अकेले।।
न आँसू बचे हैं, जिन्हें मैं दिखाऊँ।
बता क्या कहानी, सभी को सुनाऊँ।
लिखा भाग्य में है,बता क्या विधाता-
रहा हाथ खाली,भला क्या दिखाऊँ।।
अकेला चला था, अभी भी चलूंगा।
अकेले अकेले , सभी से लड़ूंगा।
नहीं आज बाधा हमें रोक पाये-
लिए हाथ में भाग्य कुंजी बढूंगा।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’