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9 Sep 2019 · 1 min read

मुक्तक

उम्र मेरी अब ढलती जा रही है।
तृष्णा मेरी और पलती जा रही है।
गुज़र रही जिंदगी यूँ ही मेरी।
वक्त की कमी खलती जा रही हैं।

Language: Hindi
1 Like · 568 Views
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