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3 Sep 2019 · 1 min read

मुक्तक

सूखी जमीं पर मेघों को गरजते देखा
समंदर में जाकर उन्हें बरसते देखा,
मेरे शहर में झुग्गी-झोपडी की कमी नहीं
जहाँ बचपन को हर चीज पर तरसते देखा।
अनिल कुमार मिश्र।

Language: Hindi
283 Views
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