मुक्तक
जब भी वो सफ़हा कोई नया सा पलटता होगा
मेरे जानिब से यादों के साये में घिर जाता होगा।
तमाम मसरूफ़ियतों को खुद से करके दरकिनार
तन्हाई के आलम में जब भी वो तन्हा बैठता होगा।
मेरे नाम के हर्फ से अक्स मेरा भी उभर आता होगा
जिस से मुस्कान होठों पे बेपरवाही से तैर जाता होगा !
…पुर्दिल