मुक्तक
किताबों से दिल लगाए बैठे हैं,
आसमान का ख्वाब सजाए बैठे हैं,
कभी दिल्लगी भी बेशुमार की थी,
अब मंजिल से दिल लगाए बैठे हैं!!
Ranjeet…..
किताबों से दिल लगाए बैठे हैं,
आसमान का ख्वाब सजाए बैठे हैं,
कभी दिल्लगी भी बेशुमार की थी,
अब मंजिल से दिल लगाए बैठे हैं!!
Ranjeet…..