मुक्तक
” आशियाँ तुम भी बुनो बिजली के तेवर के लिए,
जिस तरह हमने चुना, अपना कफ़न सर के लिए,
आईना बनकर खड़े हो जाएंगे हम सामने,
वो फिर नहीं उठ पाएँगे अब हाथ पत्थर के लिए “
” आशियाँ तुम भी बुनो बिजली के तेवर के लिए,
जिस तरह हमने चुना, अपना कफ़न सर के लिए,
आईना बनकर खड़े हो जाएंगे हम सामने,
वो फिर नहीं उठ पाएँगे अब हाथ पत्थर के लिए “