मुक्तक !
तुम मुझे इतनी हैरत से न देखो,
मत सोचो कि औरत हूँ,
इतनी आग कहाँ से लाती हूँ ?
कि चुप्पी टूटी तो सैलाब आएगा,
देखना एक नया इंकलाब आएगा !
।।सिद्धार्थ।।
तुम मुझे इतनी हैरत से न देखो,
मत सोचो कि औरत हूँ,
इतनी आग कहाँ से लाती हूँ ?
कि चुप्पी टूटी तो सैलाब आएगा,
देखना एक नया इंकलाब आएगा !
।।सिद्धार्थ।।