मुक्तक (सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं)
रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं
प्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुम
होते है बदनसीब वे जो पाकर इसे खोते हैं
मुक्तक (सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं)
मदन मोहन सक्सेना