मुक्तक भाग 1
मैं बाटती हूं रौशनी मेरा कोई ठिकाना नहीं है!
तेरे इस शहर में अब मेरा आना जाना नहीं है!
यूं तो मैं आज भी अंधेरों में महफूज़ रहती हूं!
इस सफ़र में कोई हमसफर दीवाना नहीं है!!
-सोनिका मिश्रा
किस्मत जहाँ हमें ले जाएगी, हम वही पर चले जाएंगे!
खुशबू बनकर बिखर जाएंगे, घर अपना वही बनाएंगे !
शीशो से नाज़ुक सीरत नहीं, हमारी कोई बगावत नहीं!
तुम्हारी खुशी के लिए, बनके सितारा चमक जाएंगे!!
-सोनिका मिश्रा
नन्हें नन्हें हाथों को, माँ तू चूमा करती थी!
रोनी सूरत देख मेरी, आँचल में भर लेती थी!
याद मुझे हर लम्हे हैं, साथ मेरे हर किस्से हैं!
गिर जाऊ धरा पर, मुझमें साहस भरती थी!!
– सोनिका मिश्रा
अपना एक अलग अंदाज़ होना चाहिए!
आसमां से भी बड़ा ताज होना चाहिए!
पहचान तो बहुतों की होती है दुनियां में!
मेरे अपनों को मुझपर नाज़ होना चाहिए!!
-सोनिका मिश्रा
दिल दुखाना हर मर्ज की दवा नहीं!
किसी को भूल जाना कोई वफ़ा नहीं!
फिर आज टूट कर, रूला सके मुझे !
मेरे मयखाने में ऐसा कोई नशा नहीं!!
-सोनिका मिश्रा
बहुत मुश्किल है रुक पाना, अब कलम चल पड़ी है
हर रोज दफन होते है जो, वो सच लिखने को अड़ी है
इंसानियत की आड़ में, जो घड़ियाली आँसू बहाते है
उनके भी राज सारे खोलने को, चौखट पे जा खड़ी है
-सोनिका मिश्रा
जाना कहाँ था कहाँ जा रहे है, लक्ष्य अब तक भ्रमित!
मुस्कान चेहरे पर हैं लिए, पर दिल है अभी तक द्रवित!
ढूँढती हूं कोई रोशनी उत्तर दे, कभी तो इन अंधेरो का!
काली राख से बिखरे हुए भी, हैं आज तक ज्वलित!!
-सोनिका मिश्रा