मुक्तक बोध
************* मुक्तक बोध ***********
दिल को भा गया सनम तेरा यूँ शररमा जाना
बेइंतहा प्यार मैं करुं देखता रहता है जमाना
मुकम्मल जहां किसी को कभी भी नहीं मिला
फ़लक का चाँद जमीं पे पाकर हुआ मस्ताना
2
तारों का नभ से टूट कर धरा पर गिर जाना
वियोग सहन करके सारा फिर से टिमटिमाना
विषम भाव- अभावों संग कर्तव्यनिष्ठ होना
दिल पत्थर सा बनाकर रौशन करते जमाना
3
सुखविंद्र देखता रहे बन कर जरा सयाना
कोशिशें लाख कर के कैसे जीतते जमाना
खुदा के रहमोकरम का मिला जो फल देखिए
रहमत की छत्र साये तले पाया है नजराना
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)