गज़ल :– नासूर यूँ चुभते रहे ॥
गज़ल :– नासूर यूँ चुभते रहे ॥
नासूर यूँ चुभते रहे ।
क्यों बेवजह झुकते रहे ॥
लुटती रही है चाँदनी,
हम चाँद को तकते रहे ॥
खिलते रहे गुल बाग में ,
हम जाम से खुलते रहे ॥
छिपते रहे वो चाँद से ,
हम रात से ढलते रहे ॥
अनुज तिवारी “इंदवार”