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23 Oct 2022 · 1 min read

मुक्तक द्वय…

खुशी में झूमते पुर- जन, ठुमकते नाचते पुर- जन।
कथाएँ जो सुनीं वन की, मगन मन बाँचते पुर-जन।
लला अब जल्द घर आएँ, विगत सुख लौट फिर आएँ,
निकट है आगमन बेला, निहारें रास्ते पुर- जन।१

हुआ वनवास जब पूरा,खुशी मन में निराली थी।
सुना था राम जब लौटे, अमा की रात काली थी।
लला का आगमन शुभ हो, नहीं कंटक गढ़े मग में,
अवध ने चौक पूरे थे, मनी घर-घर दिवाली थी।२

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
“मनके मेरे मन के” से

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 138 Views
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