मुक्तक (आज फिर…)
मुक्तक
आज एक बार फिर से हुई ऑखें नम है।
हम कैसे कहे क्या बताएँ हमे क्या ग़म है।
यूँ देख देश के शेरो को होते न्यौछावर।
करें हम जितना भी उनके लिए कम है।
कैदी-बंधक बनाकर मारने में क्या दम है।
अपना वीर सिपाही किसी से कहाँ कम है।
छिपा दुश्मन रूबरू हो युद्ब से कतराता
छिप-छिप के करता हमलें व गिराता बम है।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड़
मंगलवार
२/५/२०१७