हम बेकारों ने जमाने को क्या क्या न दिया
हम बेकारों ने जमाने को क्या क्या न दिया
शब ए सोज़ को साज़ में क्या पिरो कर न दिया
हिज्र के पहलू से लिपटे रहे हम शब भर
क्या फिर भी वस्ल को नगमा बना कर न दिया
हम अपनी खब्त में रोते रहे चाक ए दामन लिए
उठ के आए तो क्या उन्सियत को सुख़न बना के न दिया
~ सिद्धार्थ