मुकुट उतरेगा
सुन भाई, मैं सन दो हजार उन्नीस का,
आक्रान्ता सम्राट हूँ
मैं एक रहस्यमयी मुकुट हूँ.
एक यायावर हूँ, तथाकथित कोरोना हूँ
सबको मुकुट पहनाने की चाह लिए
फ़िलहाल, विश्व के दौरे पर हूँ.
……
जब लोग आपस में मिलते हैं
वह औपचारिकता निभाते हैं
मैं मौका देखता हूँ
चिपक लेता हूँ, पहना देता हूँ मुकुट
और इस तरह, धीरे-धीरे
अपना साम्राज्य बढ़ाता हूँ.
……
अभिलाषा है, पूरे विश्व को-
अपने आगोश में भर लूँ
चलते-फिरते आदमी को चुपके से डस लूँ.
पर कितने दिन खैर मनाऊंगा,
कहर कितना बरपाऊँगा,
इंसानों की फ़ितरत है,
वह हार नहीं मानते, जूझते हैं- ‘काल’ से
और इसी ‘जिजीविषा’ के कारण
सबको काल के गाल में
पहुँचाने के चक्कर में, एक दिन स्वयं,
मैं मुकुट, बेमौत मारा जाऊंगा.