मुकाम जिन्दगी के
कांटो पर चलने वाले
मुकाम पा जाते हैं
मखमल पर चलने वाले
अक्सर भटक जाते है
महलों की चमक
इरादों से भटका देती है
झोपड़ी वाले
महान हो जाते हैं
आग घर की
रोटी बनाती है
भड़क जाऐ तो
शीला बन जाती है
दिल से चाहे तो
अपने है
नफरत आँखो से
गिरा देती है
लौ से करो
मोहब्बत इतनी
रोशन करें
जिन्दगी सब की
अगर बन गयी
शौला वो तो
तबाह करेगी
ज़िन्दगियाँ सब की
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल