!!! ~मुकद्दर~ !!!
मुक्कदर को अपने
सम्भाल कर कहाँ
ले जाओगे
जब लिखी हों
ठोकरें जमाने
की, तो दर दर
पर ठोकरें ही
तो खाओगे
जिस के दर
की आस को लेकर
पहुंच जाओगे
उस के कुछ
कहने से पहले
ही उसका तुम
दर छोड़ जाओगे
आहट ही बता
देगी तुम्हें और
कुछ सम्झ न पाओगे
किस्मत की लकीर
का सबब रह रह
के लेते जाओगे
आशा की किरण
गर चमक के
दिखाई दे भी गयी
वहीं बादलोन सी
उल्झन में खुद
ही सिमट जाओगे
चाहे लाख कर्म
कर के आगे आने
को उत्सुकता
मिल जायेगी
पर बेवजह की
उल्झन में तुम
उलझ के रह जाओगे…
अजीत कुमार तलवार
मेरठ