मुँह इंदियारे जागे दद्दा / (नवगीत)
लादे सिर पर
घर की चिंता
मुँह-इँदियारे
जागे दद्दा ।
गहरी साँसें
राम नाम ले
गाय, बैल को
चारा देते ।
आग जला
गुरसी में थोड़ी
हाथ सेंकते,
पाँव सेंकते ।
उठा गड़ई
जाते हैं बाहर ,
हल्के होकर
आते हैं घर ।
हाथ गड़ई को
ठीक माँजकर
आँख सुनहरे
स्वप्न आँजकर ।
पतरी लकड़ी
ले कंजी की
करन मुखारी
लागे दद्दा ।
हल्कू, बड्डू
सब सोते हैं,
रमकलिया
जग गई सकारे ।
चौका बासन
उपले थपकर
लगी बुहारन
देहरी-द्वारे ।
चूल्हा जला
अदहन धरती है,
पनघट जा
पानी भरती है ।
सिर पर रखकर
गुंड-कसैंड़ी,
भरी खेप
लेकर आई है ।
वय किशोर है
कोमल हाथों,
जिम्मेदारी
सर आई है ।
परवशता के
मारे दद्दा ।
आज अगर
माँ इसकी होती,
रमकलिया
गोदी में सोती ।
कौंरी उमर
बोझ है भारी,
छोरी, छोरों
से भी न्यारी ।
कभी नहीं कुछ
माँगा इसने,
पूरा घर
संभाला इसने ।
बावजूद ख़ुद
भी पढ़ती है ।
छोटू को भी
ख़ुश रखती है ।
बिटिया की
चिंताएँ लेकर,
और काम का
समय भाँपकर ।
नदी नहाने
भागे दद्दा ।
लादे सिर पर
घर की चिंता
मुँह-इँदियारे
जागे दद्दा ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
168, छिरारी (रहली)
जिला – सागर (म.प्र.)