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14 Jun 2023 · 12 min read

मीना की कविताएं

प्रभात-

स्वर्ण किरणों से नहाकर।
सुनहरी अलकें सजाकर।
भोर आयी लालिमा ले-
दान देता कर दिवाकर।

व्योम मण्डल का महावर।
माँग स्वर्णिम वो सजाकर।
चमकती मोती रजत की-
अरुण छवि को अंक में भर।

लालिमा तट बिन्दु लाकर।
दिव्य सरिता में समाकर।
स्वर्णजल का भान करती-
प्रवाहित मारुत सुधाकर।

आरती धरती सजाकर।
नेह आँचल में छुपाकर।
प्रार्थना आराध्य की अब-
कर रही नव गीत गाकर।

चिन्त्यमय नव प्राण पाकर।
पुष्प जागे खिल -खिलाकर।
जागरण की भव्य मुक्ता-
विहँसती धरणी लुटाकर।

व्योम में पुलकित प्रभाकर।
देवि ऊषा को मनाकर।
कर रहे श्रृंगार जग का-
विमल मुक्ता को हँसाकर।

मायाजाल-

कैसा भ्रम का जाल है,माया का मृगछाल।
दुविधा का खण्डन करो,हे प्रभु दीनदयाल।।

पीड़ित मन का हाल तो,ज्ञात प्रभो गोपाल।
हाथ गहो शरणागते,जायें सभी मलाल।।

काल व्याल जंजाल सब,करते दूर कृपाल।
चरण शरण हरि राखिए,उन्नत कीजै भाल।।

आधि व्याधि मृगजालमय,हरि हिय दीप्त विशाल।
राम नाम शुभ सान्त्वना,श्री हरि दीनदयाल।।

नाव भँवर के जाल में,हरि जानो तुम हाल।
शरणागत रक्षा करो,जीवन डोर सँभाल।।

लोकतंत्र-

लोकतन्त्र प्रज्ज्वलित है,दीपक सूर्य समान।
होता है आलोकमय,सारा हिन्दुस्तान।।

लोकतन्त्र वारिद विमल,झर-झर निर्मल बिन्दु।
शीतलता दे चन्द्रिका,विभा सुवासित इन्दु।।

लोकतन्त्र की जीत है,वंशवाद की हार।
जनता ने अब कर लिया,सच्चाई स्वीकार।।

लोकतन्त्र में खिल उठे,स्वर्णिम कमल अनेक।
प्रमुदित हैं लक्ष्मी सुखद , हर्षित जन प्रत्येक।।

लोकतन्त्र की है विजय,जन मन में मुस्कान।
दिव्य लोकनायक मिला,मुकुलित हिन्दुस्तान।।

लोकभावना की हुई,आज प्रबल है जीत।
जनता ने दर्शा दिया,हैं वो किसके मीत।।

देशप्रेम विजयी हुआ,लोकतन्त्र की शान।
विश्व गुरू ब्रह्माण्ड में,भारत देश महान।।

रक्षाबंधन-

राखी का सौगात लेकर ,
सावन आया है।
पीहर की बहार बनकर,
सावन आया है।।
बचपन की हर याद लेकर ,
सावन आया है।
धरती का श्रंगार लेकर,
सावन आया है।।

मैके का मृदुबात लेकर,
सावन आया है।
हरी भरी बारात लेकर ,
सावन आया है।।
सतरंगी फुहार लेकर,
सावन आया है।
ठण्डी सी बयार लेकर,
सावन आया है।।

परदेशी सन्देशी लेकर ,
सावन आया है।
राखी का परिवेश लेकर,
सावन आया है।।
रक्षाबन्धन डोर बनकर,
सावन आया है।
प्रियजन से मिलने बन ठनकर,
सावन आया है।।

सावन-

घनघोर घटा छाई भू पर।
उतरें है सितारे धरती पर।
झिलमिल-झिलमिल हैं तरु पल्लव-
अम्बर आया है भूतल पर।।

है झूम रही डाली-डाली।
जुगनू की चमक लगती आली।
कर रहे प्रकाशित तरुवर को-
है खिली चतुर्दिक हरियाली।

सावन के मस्त फुहारों से।
झींगुर की सुखद गुंजारों से।
गा रही कामिनी दोलन पर-
कजरी के गीत बहारों से।

आयी पीहर बहना सारी।
स्वर सप्त सुधा जीवन प्यारी।
खिल गये गात पितु -मातु वृद्ध-
सौभाग्यमयी बहनें न्यारी।

खिलती है सावन की मंजिल।
त्यौहारों की सजती महफिल।
बेटी को सुखमय देख खिले-
अम्मा बप्पा के हर्षित दिल।

भाई बहनों के बचपन की।
रक्षाबन्धन अपने मन की।
शुचि प्रेम प्रज्ज्वलित दीप अमल-
महकी बगिया शुभ जीवन की।

भाई बहनों का अमिट प्यार।
रक्षाबन्धन पर दीप्तवार।
सबसे प्यारा दिन जीवन का-
बचपन वाला दिन जीत हार।

सावन-

सुर्ख सावन की मेंहँदी थाम रस्सियाँ।
खनकती चूड़ियाँ पेंग भरने लगीं।।

आया सावन सुहावन सुहाना समय।
धानी रँग की चुनरिया सँवरने लगी।।

गीत गाती हुई सब सखी मिल गयीं।
आज मैके की सिहरन निखरने लगी।।

भाई का मन खिला लो बहन आ गयी।
बहन बचपन की धारा में बहने लगी।।

राखियाँ सज गयी सारे बाजार में।
आज रौनक स्वयं में सिहरने लगी।।

रक्षाबन्धन का पावन सुहावन समय।
मन में भावुक उमंगे उबरने लगी।।

प्यार का त्याग का गहरा नाता प्रखर।
आज बाबुल की गलियाँ महकने लगी।।

पर्व है प्रेम का भाई बहनों का ये।
भावनाएं हृदय में उतरने लगी।।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी-

भादों की रैन अँधेरिया,
झमाझम बरसै हो।
रामा जन्मे हैं कुँवर कन्हैया,
मगन भये त्रिभुवन हो।।

जन्मत रूप ललन के,
तेज अति सुन्दर मुखर मनमोहक हो।
रामा चारि भुजा के नाथ,
प्रकट होइ बोले हो।।

लै चलो यमुना के पार,
नन्द जी के द्वार यशोदा जी के द्वारे हो।
रामा जन्मी है जग कल्याणी,
भवानी लै आवहु हो।।

खुल गये बन्द किवाड़
निन्द्रा में गये सैनिक हो।
रामा खुल गयी बेड़ी हथकड़ियाँ,
समय शुभ मंगल हो।

विषय-नाता

सबसे गहरा होता है,
मानवता का नाता।
जाति धर्म या सम्प्रदाय,
ये सबसे पृथक विधाता।।

मानवतावादी बनकर,
जो जीवन ज्योति जलाता।
दिव्य अमरता सकल सम्पदा,
वो प्रतिपग पर पाता।।

मानवता की रक्षा करना,
है कर्त्तव्य सभी का।
इसकी सेवा मंजिल तक,
सबको लेकर जाता।।

हर मानव का मानवता से,
है अगम्य शुचि नाता।
मानवता की सेवा कर,
मानव सुख अन्तस् पा जाता।।

स्वर

अ से अनन्नास ,अमरूद।
आ से आम खाओ खूब।।
इ से खाओ मधुर इमरती।
ई से ईश्वर हैं मौजूद।।

उ से उपले देती गैया।
ऊ से ऊन बनाये भैया।।
ऋ से ऋषिवर देते ज्ञान।
अपना भारत देश महान।।

ए से एड़ी रखना साफ।
ऐ से ऐनक दिखता साफ।।
ओ से ओढ़नी दीदी की।
औ से औषधि होता जी।।

अं से मधुर-मधुर अंगूर।
अः प्रातः तुम चलो जरूर।।
स्वर की सुन्दर मूरत जानों।
इनकी मात्रा को पहचानों।।

व्यंजन

क से कमल,कपोल कलम।
ख से खजूर खायेंगे हम ।।
ग से गमला खूब सजायें।
घ से घर में घड़ी सजायें।।
ड. को भी पढ़ना है।
हमको आगे बढ़ना है।।

च से चन्दा मामा गोल।
छ से छत पर पढ़िये बोल।
ज से जल में मछली रानी।
झ से झरना बहता पानी।।
ञ भी पढ़ना और समझना।
हमको पढ़कर आगे बढ़ना।।

ट से टमाटर गोलू लाल।
ठ से ठेला करे कमाल।।
ड से डलिया ,डमरू डम -डम।
ढ से ढक्कन ढोल ढमाढम।।
ण का भी करना उच्चारण।
शब्द बनेंगे अक्षर कारण।।

त से तकली औ तरबूज।
थ से थरमस थाली थन।।
द से दाल दवात दवा।
ध से सबको भाता धन।।
न से नल की करो सफाई।
सदा स्वच्छता रहे भलाई।।

प से पल्लव और पपीता।
फ से फल का रस जो पीता।।
बल से होते वो बलवान।
भ से साथ सदा भगवान।।
म से मटर मलाई खाओ।
मक्खन मेवा के गुण गाओ।।

य से यज्ञ और यजमान।
र से रस्सी कवि रसखान।।
ल से लड्डू लकड़ी लट्टू।
व से वनमानुष वक वन।
श से शिक्षा सबसे पावन।।
ष से षडमुख देव षडानन।
स से सरसो होता तिलहन।।
ह से हल हरि हाथ हथौड़ा।
क्ष से क्षत्रिय क्षमा क्षमता।।
त्र से त्रय त्रिभुवन त्रिशूल।
ज्ञ से ज्ञान सदा अनमोल।।

कृष्णजन्म षष्ठी-

पालने झूलें कन्हैया छठिया दिन सुन्दर
छठिया शुभ मंगल हो।
रामा नन्दरानी नजर उतारें बँटावें मृदु मोदक ,बँटावे मृदु मोदक हो।।

बाजे बधैया गोकुल में,यमुना जल नाचै,देवपुर राजै हो।
रामा हरषी मथुरा नगरिया ,कंस जिया डरपै,कंस जिया डरपै हो।।

पापी बुलाये पूतनवा,भयानक लागै, भयानक लागै हो।
रामा धरिकै रूप ग्वलिनियाँ, पहुँच गयी गोकुल ,पहुँच गयी गोकुल हो।।

ललना उठाये पलन से ,खेलावन लागी,झुलावन लागी हो।
रामा विषमय करावै पयपान कन्हैया सब जानयिं ,कन्हैया सब जानयिं हो।।

पय संग प्राण पियन लागे, जशुमति डर भागें,ललना हेरन लागीं हो।
रामा पूतना भयी विकराल,विकल होइ भागी,विकल होइ भागी हो।।

धनि धनि यशोदा के लालन,नन्दजु के लालन हो।
रामा धरती के बोझ मिटावन सकल हरषावैं धरनि हरषावैं हो।।

ललना खेलन पावें मैया, तो जियरा जुड़ानी तो देवता मनावैं हो।
रामा प्यारे से कृष्ण कन्हैया, छठिया मनमोहन,छठिया शुभ सोहर हो।

नमन सकल गुरुजन

सफलता की जब भी कहानी लिखूँगी।
गुरुओं की अमृत सी बानी लिखूँगी।।

कंटक भरा पथ सुगम जो बनाये।
प्रथम गुरु है जननी सुज्ञानी लिखूँगी।।

पकड़ अगुँलियाँ जिसने चलना सिखाया।
पिता संग बचपन सुहानी लिखूँगी।।

दिया अक्षरों का वृहद् ज्ञान जिसने।
गुरू श्रृंखला को नमामी लिखूँगी।।

बसा मूर्ति पावन वो अपने हृदय में।
मै साफल्य सोपान धानी लिखूँगी।।

मै भारत की पुत्री वरद् शारदे की।
स्वयं कल्पना की रुहानी लिखूँगी।।

शत्-शत् नमन है सनातन सुपूजित।
प्रथा अपनी गुरुकुल पुरानी लिखूँगी।।

जहाँ गुरुजनों का मनस् शिष्य में हो।
स्नेह जाह्नवी जैसा पानी लिखूँगी।।

कृपा करना ईश्वर रहकर मैं दीपित ।
सुधा ज्योत्सना सी अमानी लिखूँगी।।

हरितालिका तीज

विष धारण करके बमभोले,
त्रिभुवन का ताप मिटाते हैं।
ग्रीवा पर रोके गरल रहे ,
हर नीलकण्ठ कहलाते हैं।।

आराध्य स्वयं परमात्म लीन,
श्रीहरि का ध्यान लगाते हैं।
कल्याण करें ब्रह्माण्ड सकल,
शिव शम्भु परम कहलाते है।।

जग ताप मिटाने वाले का,
अभिषेक नीर से करते हैं।
अपने अन्तस में उमा संग,
भोले का चिन्तन करते हैं।।

हर बमभोले हर-हर भोले,
करती काँवड़ियों की टोली
प्रणम्य हरितालिका तीज,
अन्तस जगदम्बा जय बोली।।

विघ्न विनाशक नमो नमः

विघ्न विनाशक नमो नमः।
देव विनायक नमो नमः।
ऋद्धि प्रदाता सिद्धि प्रदाता-
बुद्धि प्रदायक नमो नमः।

एकदन्त गजवदन मनोहर।
मोदकप्रिय गणपति लम्बोदर।
गौरीसुत जग प्रथमपूज्य प्रभु-
गणनायक शत नमन वृकोदर।

हर्ताविघ्न सकल सुखदायक।
सतत प्रणाम देवता नायक।
नमन गजानन गणाधिपतये-
बन्धु षडानन अन्तस् नायक।

दिव्य भाल सिन्दूर सुशोभित।
मनहर रूप बालछवि लोभित।
बलिहारी जगमातु भवानी-
पीत वसन शुभ सुन्दर शोभित।।

मंगलमय भगवान गणेश।
शुभकारी हे पुत्र महेश।
जग कल्याण करें भगवन-
शत्-शत् नमन प्रभो लग्नेश

लगे चहकने विद्यालय

बच्चों की टोली से अपने,
लगे चहकने विद्यालय।
शोर शराबा धमा चौकड़ी,
लगे गूँजने विद्यालय।।

सभी कक्ष पुष्पित होकर,
लगे महकने विद्यालय।
बाल वृन्द की मोहक क्रीडा,
लगे सँवरने विद्यालय।।

कुछ कविता कुछ मधुर कहानी,
लगे ठहरने विद्यालय।
गतिविधियों की गूँज बिखरती,
लगे निखरने विद्यालय।।

वर्षा के बूँदों से झमझम,
लगे विहँसने विद्यालय।
बच्चों के आगम का स्वागत,
लगे समझने विद्यालय।।

गौरीपुत्र विनायक जय -जय

गौरीसुवन विनायक जय-जय।
विघ्नहरण गणनायक जय-जय।
लम्बोदर गजवदन मनोहर-
प्रभु सद्बुद्धि प्रदायक जय-जय।

क्लेशहरण सुखदाता भगवन।
मंगलकरण प्रभो शिवनन्दन।
कृष्णपिगांक्ष देव दयानिधि-
मंगलदाता मौलि गजानन।

ऋद्धि सिद्धि शुभदायक स्वामी।
कृपा करो हे अन्तर्यामी।
विकल जनों के भाग्यविधाता-
वक्रतुण्ड विद्या अधिगामी।

मम गृह करें निवास निरन्तर।
शत्-शत् नमन उमा गणपति हर।
हर्ता क्लेश करण शुभमंगल-
हृदय नमित है नमन जोड़
कर।

गं गणपतये नमो नमः

कुमकुम भाल सुशोभित चन्दन।
मंगलकरण उमा के नन्दन।।
महादेव सुत प्रथम सुपूजित।
महिमा तीनलोक में गूँजित।।

मूषकवाहन मोदकप्रिय प्रभु।
विघ्नविनाशक पीतबसन शुभ।
भाल दीप्त सिन्दूरी आभा।
वदन प्रफुल्ल दिव्य अरुणाभा।।

दूर्वादल अतिप्रिय प्रभु गणपति।
मानस बस दाता शुभसम्मति।।
लेखक कविवर देव विनायक।
बुद्धि ज्ञान के तुम अधिनायक।।

हे लग्नेश हरो सब पीड़ा।
तुमने तात उठाया बीड़ा।।
बुद्धि ज्ञान भर दो मन मेरे।
दर्शन दो प्रभु सान्ध्य सबेरे।।

: हे जगजम्बे

हे जगदम्बे शैलसुता माँ,
क्लेश हरो सन्ताप हरो।
अन्नपूर्णा शैलसुते माँ,
सबके गृह भण्डार भरो।।

भूतल पर तृषित क्षुधापीड़ित,
न हो कोई जगदम्बे माँ।
जन-जन की पीड़ा हरण करो,
भव भयहारिणि हे अम्बे माँ।।

आकर मम गेह निवास करो,
अन्तस में वास करो दाती।
हियतल में जागे अमर ज्योति,
हे अभयदायिनी भयत्राती।।

मनमन्दिर नवल प्रकाश करो,
जगजननि हृदय में वास करो।
चरणों में तेरे मनः मधुप,
माँ मन्द मधुर मृदुहास करो।।

अपने अंचल की छाया से,
माते अब मुझे निहाल करो।
मन रमे सुपूजित चरण कमल,
उन्नत तनया का भाल करो।।

आँचल फैलाये माँग रही,
तव कृपादृष्टि सौगात सुधा।
अब अन्धतिमिर विच्छिन्न करो,
जाग्रत कर दो माँ दीप्त प्रभा।।

जगदम्बे अटल सुहाग करो,
गोदी का अमर माँ लाल करो।
मैं माँग भरी जाँऊ सुरपुर,
हे दयामयी प्रतिपाल करो।।

माँ आश लगाये चरणों में,
झोली भरती सबकी पल में।
अन्तस् में मेरी जगदम्बे,
हैं खिले पुष्प उर शतदल में।।

ब्रह्मचारिणी माँ

: हे ब्रह्मचारिणी रागहारिणी,
द्वेषहारिणी जगदम्बा।
भव की पीड़ा सब दूर करो,
माँ तापहारिणी अविलम्बा।।

शुभ श्वेतवसन शुचि शुभ्रहार,
दर्शन कर पाते भक्त पार।
कर दिव्य कमण्डल मातु धार,
आओ लोचन के मातु द्वार।।

कृशकाय सुलोचनि तेज प्रखर,
आनन आभामय दीप्त अधर।।
हे भाग्यविधाती जगदम्बे,
जयध्वनि गुंजारित सुर मुनि नर।।

जय देवि अपर्णा जगदम्बे,
माँ कष्टहारिणी अविलम्बे।
मृदु मन्दहास पूरित प्रकाश,
विनती सुन लो मेरी अम्बे।।

उर आसन पर माँ वास करो,
नयनों में सदा निवास करो।
मधुमय वाणी से गान करूँ,
कलकण्ठ सुगीत विकास करो।।

माँ तेरे दया की आश लिए,
तेरी पुत्री विश्वास लिए।
प्रतिपल पथ अपलक देख रही,
तव ममता की अभिलाष लिए।।

जन-जन का बेड़ा पार करो,
माते सबका उद्धार करो।
माँ वरद् हस्त की छाया में,
मानस के सभी विकार हरो।।

चन्द्रघण्टा अम्बिका-

सजाके अपनी माँ की मूरत,
हृदय निलय में बसा लिया है।
है आश अम्बे कृपा तुम्हारी,
भक्ति की ज्योती जगा लिया है।।

जगज्जननी स्वर्णप्रभामयि,
सुमूर्ति मन में बसा लिया है।
माँ चन्द्रघण्टा सुदीप्त आभा,
नयन में अपने छुपा लिया है।।

कृपालु माते विपत्तिहारिणि,
तिमिर को सारे मिटा दिया है।
सदा प्रकाशित हृदय सुवासित,
अम्ब की छवि को बिठा लिया है।।।

अभयप्रदायिनि असुर विनाशिनि,
चरण शरण मन रमा लिया है।
ज्ञानदायिनी वेद प्रकाशिनि,
तव आश मन में जगा लिया है।।

माँ कूष्माण्डा नमो नमः

चतुर्थ रूपिणी जगदम्बे,
माँ कूष्माण्डा नमो नमः।
नवदुर्गे जगजननी मेरी,
देवि पराम्बा नमो नमः।।
हर लो सारे कष्ट भवानी,
पथ के कंटक मुरझायें।
कृपा करें मेरी अम्बे माँ,
भक्ति सफल हो हरषायें।।
चरण कमल आलिन्द रमे मन,
लोचन में छवि छा जाये।
आश और विश्वास सफल हो,
दयादृष्टि अन्तस पाये।।

प्रखर तेजमयि दीप्तमयी माँ,
दयामयी माँ नमो नमः।
हे वरदानी अभय दायिनी,
प्रभामयी माँ नमो नमः।।

कात्यायनी कल्याणी

कात्यायन मुनिवर की कन्या,
कात्यायनी माँ मेरी।
पथ के कंकड़ फूल बने सब,
करें कृपा अम्बा मेरी।।
तव अहेतुकी अनुकम्पा से,
सन्मार्ग प्रशस्त हमारे हों।
मन मन्दिर में माँ वास करें,
प्रतिपल हम तेरे सहारे हों।।

प्रतिपग पर दयादृष्टि करना,
अविचल विश्वास हमारा है।
हे जगदम्बे कृपामयी माँ,
ये सौभाग्य हमारा है।।

जय जगदम्बा कालरात्रि माँ

सक्षम हो माँ आप भवानी।
हरो सकल संताप भवानी।
विद्युत प्रभा अलौकिक आभा-
कालरात्रि शुभदातु भवानी।

अतुलित अनुपम तेज भवानी।
प्रभामयी आवेश भवानी।
कृष्णवर्ण शुभंकरी माता-
अभयदायिनी वेश भवानी।

त्राहिमाम हे माँ जगदम्बा।
कष्ट हरो देवी अविलम्बा।
एक सहारा एक भरोसा-
सदा आप हो मेरी अम्बा।

सुखदाती शुभनेत्र अम्बिका।
कालरात्रि जगदम्ब चण्डिका।
दुर्जन में भय व्याप्तकारिणी-
हे जगदम्बा मातु कालिका।

भक्तिदायिनी व्याधि हारिणी।
मंगलकरिणी जगत् तारिणी।
हे जगदम्बा चरण शरण दो-
विद्यावारिधि नेह वारिणी।

सुखरूपिणि कल्याण करो माँ।
सहज सुमंगल प्राण करो माँ।
आधि व्याधि से सकल जगत का-
संकल्पित शुभ त्राण करो माँ।

महागौरी मंगला-

महाश्वेता महागौरी,
अम्बिके शुभदायिनी।
चन्द्रवत शुभशीतले,
कुन्दवत प्रियहासिनी।।

भगवती सौभाग्यदाती,
कर्पूर भवभामिनी।
आलोकमयि देवि माँ,
सत्त्वगुण सुप्रकाशिनी।।

भाल उज्जवल दिव्य मंगल,
मंगला संरक्षिका।
आद्यशक्तिः ओजमयि माँ,
व्यापिनी जगदम्बिका।।

शुभ्रमंगल स्रजक सुन्दर,
श्वेतवस्त्रावृता माते।
बुद्धि मंगल शुद्धिकारिणि,
रूप अष्टम जग विधाते।।

अभयदायिनि वरदायिनी,
तव चरण शरणं गच्छामिः।
सर्वमंगलमांगल्ये माँ,
पद्मपंकज शत नमामिः।।

नमामि सिद्धिदात्री-

जय हो सिद्धि प्रदायिनि माता।
सिद्धिदात्री जग विख्याता।।
सुर नर ऋषि मुनि यक्ष पूजिता।
सकल सिद्धि नवरात्रि सेविता।।

भव्य रूप अति सुखद भवानी।
जगदम्बा दुर्गे कल्यानी।।
अतुलित वैभवशालिनि माता।
जगद् वन्दनी देवि सुगाता।।

सर्वैश्वर्य प्रदायिनि अम्बा।
त्राहिमाम मत करहु विलम्बा।।
हरष विषाद मिटे भय सारे।
जाय मातु जेहि शरण तिहारे।।

नवम रूप वरदायिनि माता।
पूजित अखिल वेद विधि गाता।।
सौम्य सुलोचनि मातु भवानी।
कृपा करो हे माँ कल्याणी।।

: हे रघुवर रावण अनगिन हैं

हे राघवेंद्र रावण हैं अनगिन,
प्रतिरूप धरे धरती व्याकुल।
धरणीधर पर हैं बोझ बढ़े,
तव भक्त यहाँ पर हैं आकुल।
इक दृष्टि करो करुणा की अब,
वसुधा पीड़ित गौ माँ पीड़ित-
उत्पीड़न सन्तों का होता,
मुरझाता सत्य न्याय पल पल।

होते हैं धर्म विलुप्त यहाँ,
रघुवीर अधीर है धन्य धरा।
सुखदायक नायक राम प्रभो,
मुरझायी हुई यह विश्वम्भरा।
मर्यादा के स्वामी भगवन,
अस्तित्त्व पर आज सवाल उठे-
मख खण्डित होती धर्मधुरी,
सरिताओं में अपशिष्ट भरा।

आराध्य मेरे जनमानस के,
सब होवें सुखी सम्पन्न सभी।
दुःख व्याप्त न हो धरणी तल पे,
मखशाला सुपूजित रम्य नदी।
जानकी जननी जग ज्योति रहे,
वसुधा पुलकाय रहे मनहर-
छविधाम हे राम बसो मन में,
भयभीत सिया नहि होवे कभी।

मन मन्थन में शुभ जीवन में,
जगदम्ब सिया संग वास करो।
हो सत्त्व प्रकाशित अन्तर् तम,
अभिराम की मूरत ताप हरो।
सत् हारे नहीं विजयी हो सदा,
अतिचार का आगम रुद्ध रहे-
प्रियदर्शन राघव शुभदर्शन,
जीवन पथ के संताप हरो।

रामभक्त-

: हे सरस्वती के वरद् पुत्र।
प्रभु रामभक्त सद् परमपूज्य।
वन्दन में मैं निःशब्द सदा-
अवतरण धरा पर है अतुल्य

हो सूर्यप्रभा सम तेजरूप।
हे भक्त शिरोमणि विद्वभूप।
सूरज को दीप दिखाऊँ क्या-
जग में फैलाया ज्ञानधूप।

मैं दर्शन की अभिलाष लिए।
शुभ नमन चरण में आश लिए।
आशीर्वचनों की आकांक्षा-
नव भक्त अमल मृदुहास लिए।

वन्दन को. शब्द कहाँ पाऊँ।
हे परमपूज्य तव गुण गाऊँ।
बस चिन्तन में कर लूँ दर्शन-
हरिभक्ति सुधा मैं पा जाऊँ।

मै रामकथा का पान करूँ।
शुचि धन्य धरा अभिमान करूँ।
सब कर्म समर्पित हो प्रभु को-
परमेश्वर का आह्वान करूँ।

शब्दों के सुमन बिछाऊँ मैं।
श्रद्धा के पुष्प चढ़ाऊँ मैं।
कर गिरधारी जी का वन्दन-
दिनकर को दीप दिखाऊँ मैं।

गुनगुनी धूप

पीत वर्ण स्वर्णिम आभा ले,
धूप गुनगुनी आयी है।
हरित घास पर स्वर्णप्रभामयि,
धूप गुनगुनी छायी है।।
बालवृन्द की वृद्धजनों की,
आशा लेकर आयी धूप।
बुनतीं स्वेटर रंग बिरंगे,
मोहक मुख पर छायी धूप।।
विद्यालय में गतिविधि करके,
छात्र धूप में हरषाते।
सूर्यदेव की कृपादृष्टि से,
सर्दी में सब सुख पाते।।
धूप गुनगुनी स्वर्ण बिखेरे,
जीवन में नव रंग भरे।
बालवृन्द भरते किलकारी,
सबके हृदय उमंग भरे।।
धूप गुनगुनी पीड़ा हरती,
शीतकाल में सुखदायी।
संचालित कर नूतन आशा,
स्वर्ण सुधा लेकर आयी।।
देव प्रत्यक्ष हमारे दिनकर,
पालक धर्म निभाते हैं।
जीवन ज्योतित रवि किरणों से,
आभा स्वर्ण लुटाते हैं।।

राम-

मन में बसे हों राम
बन जायें सब काम
प्रिय सबके ही राम
नाम को पुकारिये।

पूरण प्रमाण राम
जीवन प्रगाढ़ राम
बसते हैं प्राण राम
काम को सुधारिये।

गीत रस छन्द राम
पूज्य मकरन्द राम
कछु नहि द्वन्द राम
भक्ति को जगाइये।

शम्भु के मनीष राम
हरि जगदीश राम
हनुमत ईश राम
यश को सुनाइये।

हरते सकल ताप
मिटते भुवन पाप
कटते कुटिल शाप
राम नाम लीजिए।

राम रस पान कर
सफल विहान कर
नाम शुभ मानकर
गुणगान कीजिए।

राम जी कृपालु हैं
बड़े ही दयालु हैं
जग के भुवालु हैं
नाम रस पीजिए।

आये पुनि रामराज
हो सुखी सभी समाज
शुभ रहे काम काज
सुविचार दीजिए।

पिता-

विमल व्योम से व्याप्त सुस्नेहिल,
पोषक पालनहार पिता।
संस्कार की छाया में रख,
करते अतिशय प्यार पिता।
अनुशासन शिक्षा का सम्बल,
मिलते हैं इनके अम्बर में-
माता के सौभाग्य हमारे,
घर के हैं आधार पिता।

जीवनदायक स्नेहप्रदायक,
देते सब अधिकार पिता।
जीवनपथ पर हरदम करते,
रहते हैं उजियार पिता।
सर्व सुमंगलदायक हैं पितु,
मानस करे हृदय से वन्दन-
सौख्यसिन्धु शुभ गेह विनायक,
करते हैं उद्धार पिता।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

Language: Hindi
1 Like · 193 Views
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