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3 Jun 2023 · 1 min read

मीना की कविताएं

हरि नख निसृत, विस्तृत भूतल।
सुरसरित् प्रवाहित कल-कल स्वर।।
चट्टान तोड़ उत्थान सुपथ।
निर्मल शीतल करती निर्झर।।
शिव शीश सजी जीवनदायिनि।
शत नमन करो गंगे हर -हर।।
है दुग्ध धवल सा हिमगिर जल।
करतीं हैं माँ धरती उर्वर।।
नव स्नेह सिक्त सिंचन करतीं।
बहती रहती मधु मृदुल अवर।।
सौगात हमें दे वसुन्धरा।
जीवनपोषक नव अन्न प्रखर।।
गंगातट स्वच्छ सुपूरित हो।
सुरभित हो कूल सुहास प्रवर।।
रसना गंगा का यश गायें।
गायन में नृत्य करें स्वाधर।।

डा.मीना कौशल ‘प्रियदर्शिनी’

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 389 Views
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