मीनाकुमारी
हिन्दी फ़िल्म जगत के रंगीन आसमान पर चमकते सितारे सी एक सफलतम अभिनेत्री मीनाकुमारी ‘ट्रेजडी क्वीन’ कही जाती है। मीनाकुमारी का जीवन वेदनाओं के उतार-चढ़ावों से भरा रहा। वे बेहतरीन अदाकारा होने के साथ ही साथ कमाल की शायरा भी थी। मीनाकुमारी ने वसीयत में अपनी डायरियों और शायरियों के कॉपीराइट गुलजार साहब के नाम कर दी थी, जिन्होंने बाद में उसे छपवाया। उनके कलाम उनकी नीजि जिन्दगी का आईना थे। मसलन :
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली,
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली।
मीनाकुमारी का जन्म 1 अगस्त 1932 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम महजबीं बानो था। गरीबी से त्रस्त उनके पिता अली बख्श ने उसके पैदा होते ही उसे अनाथालय में छोड़ आये थे, लेकिन उनका मन नहीं माना और वह पलटकर बच्ची को गोद में उठाकर घर ले आये थे।
परिवार की दयनीय आर्थिक स्थिति की वजह से मीनाकुमारी ने महज 4 साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के साथ एक बाल कलाकार के रूप में कार्य करना आरम्भ कर दिया था। एक जगह उन्होंने लिखा है :
उदासियों ने मेरी आत्मा को घेरा है,
रुपहली चांदनी है और घुप अंधेरा है।
जिन्दगी भर एक अदद प्यार की तलाश में भटकती मीनाकुमारी और कमाल अमरोही का रिश्ता पथरीली राह जैसी था। मीनाकुमारी उसे बहुत चाहती थी, जो उसकी तीसरी बीवी थी, लेकिन बदले में उसे रुसवाई मिली। कुछ सालों बाद वे पृथक हो गए थे। मीनाकुमारी ने दिल में दर्द, तड़प और तन्हाई के चलते शराब का सहारा लिया। बावजूद उनकी कलम ने दिल के दर्द और उदासियों को व्यक्त किया। उसने लिखा था :
न हाथ थाम सके न पकड़ सके दामन,
बड़े करीब से उठकर चला गया कोई।
महज 39 बरस की उम्र में 31 मार्च 1972 को इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कहने वाली मीनाकुमारी जब तक जिन्दा रही दर्द चुनती रही, बटोरती रही और दिल में दफ्न करती रही। इसतरह दर्द, गम और आँसुओं में डूबी मीनाकुमारी की अन्तिम इच्छा थी कि निम्नलिखित पंक्तियाँ उनकी कब्र पर लिखा जाए :
वो अपनी जिन्दगी को
एक अधूरे साज
एक अधूरे गीत
एक टूटे दिल
परन्तु बिना किसी
अफसोस के साथ
समाप्त कर गई।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक