मीठे बोल या मीठा जहर
हद से ज्यादा जो मीठा बोले,वो व्यक्ति अपनापन पा जाता है।
उस मीठे बोल के पीछे क्या है,यह क्यों कोई परख नहीं पाता है।
शहद ढूंढने निकल के देखो असली शहद ढूंढे से भी मिल नहीं पाता है।
नकली शहद जबकि हर घर में बहुतायत में पाया जाता है।।
मीठे का है खेल निराला मीठा सबको पसंद आ जाता है।
सब यह जाने ये जान का दुश्मन,फिर भी हंस कर हर कोई खाता है।
बातों का भी यही सिलसिला मीठी बात में मजा बहुत ही आता है।
और उसी बीच में एक सच बोलो,वो क्यों सबको कड़वा लग जाता है।।
स्वस्थ खाना खाकर भी जैसे व्यक्ति उसकी तारीफ नहीं कर पाता है।
अंत में खाया मीठा हर व्यक्ति से अपना गुणगान कराता है।।
कहे विजय बिजनौरी भैय्या मीठी बात को सुनना बहुत ही जरूरी है।
लेकिन उस पर करूं अमल यह नहीं नहीं मेरी मजबूरी है।।
झूंट के पांव नहीं होते यह हर कोई व्यक्ति जानता है।
फिर क्यों सच को अपनाने में तू बंदे खुद को अक्षम मानता है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी