‘मीठी साँझ जगाये रखना’
खुद पर आँख लगाए रखना
अपनी बात बचाए रखना
दौर बुतों संग जीने का है
हर पल शीश झुकाए रखना
बाँटों लंगर जी भर-भरके
थाली एक सजाये रखना
चेहरा गीला ना कर जाए
उनकी याद छिपाये रखना
माथे की सिलवट बोलेगी
शब की बात छिपाये रखना
उलझ ना जाए दुख पलकों से
वस्ल की रात ओढ़ाये रखना
किसी रोज़ उनको आना है
मीठी साँझ जगाये रखना
परदेसी घर झाँक ना पाये
साँकल द्वार लगाये रखना
मिलकर भी चुप वो रहते हैं
उनसे हाथ मिलाये रखना
उन को फिर जीवन देना है
अमृत ज़रा बचाये रखना
दुःख तक इस का ध्यान ना जाए
मन को बस उलझाये रखना
उन के बिन दिल वीराँ ना हो
बस्ती एक बसाये रखना
तुम्हें पुकारे वो क्यों आख़िर
अपनी पहुँच बनाये रखना!
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ