मीठी बोली
जाने कितने बिक जाते हैं, प्यारे मीठी बोली में।
हॅंसी -खुशी सौगात मिले अब,बाबा मेरी झोली में।
नहीं प्यार की कीमत कोई,ये तो बस अनमोल यहाॅं,
चंदन अक्षत कुमकुम टीका,प्यार भरा है रोली में।
स्वर्ण काल है हर जीवन का,छल प्रपंच से दूर रहे,
बचपन की वह यादें ताजा, मस्ती वाली टोली में।
फागुन का त्योहार निराला,मस्ती को लेकर आता,
रंग -बिरंगे रंगों से ही, खेला करते होली में।
भाई -बहनों का रिश्ता पावन,रिश्तों की हर डोरी से,
बड़े प्रेम से बाॅंधा करती,प्रेम मिला है मोली में।
सुख -दुख का है ऐसा संगम, भावुकता की है बातें,
जाती है जब गुड़िया रानी,सज धज कर ही डोली में।
बॅंधा हुआ विश्वास जगत में,प्रेम समर्पण से आती,
खट्टी-मीठी बातें होती,आपस की हमजोली में।
डी एन झा दीपक © देवघर झारखंड