मिसाल रेशमा
जीवन के सिर्फ 17 वसन्त देख पाई थी रेशमा। तभी एसिड अटैक का शिकार हो गई, फिर शुरू हुआ जिन्दगी और मौत का संघर्ष। एसिड अटैक के पश्चात हाड़-मांस का शरीर जलने के बाद दर्द की इन्तहा हो गई। मांस गलकर गिरने लगा था, आँखें चिपकी हुई थीं। इतनी खराब स्थिति कि देखने वाले घबराकर चीख उठते।
ताज्जुब यह कि रेशमा का अन्तर्मन इस दर्द को सह रहा था। दर्द इतना कि इंसानी सोच से परे। देखकर लगता कि सच में अपार वेदना के समय कोई शक्ति हिम्मत परोसती है।
रेशमा न केवल खुद से लड़ रही थी, वरन् अस्पताल, पुलिस और व्यवस्था की बेरुखी झेल रही थी। इलाज के लिए जाते वक्त भी उन पर हमला हुआ।
रेशमा के दर्द ने सारे देखने और महसूसने वालों को हिलाकर रख दिया। मन बरबस ही सवाल पूछने लगा कि फिर क्यों इंसान अपनी जिन्दगी की छोटी सी मुश्किलों और उलझनों में हथियार डालकर मौत को गले लगा लेते हैं।
आज रेशमा कुरैशी एसिड अटैक पीड़िता नहीं, बल्कि एक सफल भारतीय मॉडल और एसिड विक्रय के विरोध में सक्रिय कार्यकर्ता है। वह ‘मेक लव नॉट स्कार्स’ नामक संस्था के माध्यम से एसिड हमलों से पीड़ित लोगों के विस्थापन के लिए कार्य भी कर रही है।
प्रेरणा के स्रोत, संघर्ष और हौसले की मिसाल रेशमा के जज्बे को लख-लख सलाम…।
मेरी प्रकाशित 34वीं कृति : ‘ककहरा’ (दलहा, भाग-5) लघुकथा संग्रह से,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
सुदीर्घ एवं अप्रतिम साहित्य सेवा के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त।