मिलेगा क्या तुझे इस द्वेष की अब अग्नि में जल कर
ग़ज़ल
मिलेगा क्या तुझे इस द्वेष की अब अग्नि में जल कर।
जलाकर प्रेम का दीपक ह्रदय को अपने उज्ज्वल कर।।
बदन तो कर लिया है साफ़ तूने अपना मल मल कर।
ज़रूरी है ज़रा अब अपने अंतर्मन को निर्मल कर।।
जो तुझ पर करते हैं विश्वास तू उनसे नहीं छल कर।
तुझे जो प्यार करते हैं तू उनसे प्यार निच्छल कर।।
किसी की प्यास की ख़ातिर कभी ख़ुद को भी छागल कर।।
तेरा भी होएगा मंगल तू लोगों का तो मंगल कर।।
सफलता तक पहुंच पायेगा काँटो पर ही तू चल कर।
“अनीस” आख़िर ये सोना भी हुआ कुंदन ही गल गल कर।।
– अनीस शाह “अनीस”